
गाजीपुर जिले के खुरपी नेचर विलेज में बोटिंग का आनंद लेते युवा।
'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।' कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए युवा सिद्धार्थ राय ने खांटी गंवई अंदाज में गांव जाकर स्वरोजगार की श्रृंखला खड़ी कर दी। जो आज युवाओं के लिए एक प्रयोगशाला के रूप में काम करने लगी हैं। अब इसकी चर्चा दूर-दूर तक हो रही है। आइए आपको बताते हैं यह लड़का कौन है?
गाजीपु-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग से लगभग पांच किलोमीटर दूर अगस्ता गांव के रहने वाले हैं सिद्धार्थ राय। मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेने वाले सिद्घार्थ शुरू से पढ़ाई में मेधावी रहे। एमबीए करने के बाद बेंगलुरु में लाखों के पैकेज पर नौकरी जॉइन की। जीवन में सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन सिद्घार्थ के मन में गांव के लिए कुछ करने के विचार गुलाटियां खा रहे थे।
2014 के लोकसभा चुनाव में गाजीपुर पहुंचकर शुरू किया काम
इसी दौरान 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान सिद्घार्थ गाजीपुर आ गए। चुनाव बाद वे तत्कालीन रेल राज्य मंत्री व संचार मंत्री मनोज सिन्हा के निजी सचिव बन गए। कम उम्र में ही बड़े प्रोफाइल का पद पाए जाने के बावजूद सिद्धार्थ ने अपने पैर जमीन पर ही रखे। सबके चहेते बने रहे। यहीं से शुरू होती है सिद्घार्थ के सपनों में पंख लगने की कहानी…आइए बताते हैं।
कुछ नया करने की लालसा ने बदल दी गांव की तस्वीर
सिद्धार्थ शुरू से ही कुछ नया करना चाहते थे, लेकिन इन सबमें एक बड़ा मुद्दा था स्वरोजगार का, जो उन्हें कचोटता था। ऐसे में सिद्धार्थ राय ने अगस्ता गांव के पास खेतों के बीच अपने मित्र अभिषेक की मदद से लगभग डेढ़ एकड़ जमीन में गाय पालन दूध उत्पादन का छोटा कार्य शुरू किया। धीरे-धीरे आस पास के गांव वालों को गाय और भैंस पालने के लिए आर्थिक मदद देने लगे।
गांव के लिए छोड़ दी लाखों के पैकेज वाली नौकरी
एमबीए की पढ़ाई करने के बाद बड़ी कंपनी में अच्छे पैकेज पर काम करने वाले सिद्धार्थ जहां लगातार पांच वर्षों तक केंद्रीय मंत्री के निजी सचिव के रूप में अपनी पहचान हाई प्रोफाइल व्यक्तित्व के रूप में बना चुके थे। इसके बाद भी अपने मित्र अभिषेक के साथ अचानक गाय भैंस के बीच गोबर उठाने का काम करने लगे। इसके बाद मुर्गी पालन शुरू हुआ।
इसमें धन की कमी आई तो उन्होंने गाय का गोबर मुर्गियों को परोसना शुरू किया। जिनमें से मुर्गी दाना चुन लेती थी। बचे हुए गोबर के अवशेष को केंचुए की मदद से देसी खाद बनाकर पैक किया जाने लगा। वही बीच में एक तालाब बनाकर मछली पालन, बत्तख पालन का कार्य शुरू हो गया। सब कुछ लगभग ठीक ठाक चलने लगा।
शहरी भीड़भाड़ से दूर निकलकर कर दिया जंगल में मंगल
लेकिन शहरी भीड़ भाड़ के बीच रहने वाले सिद्धार्थ के दिमाग में अचानक से जंगल में मंगल करने की योजना जन्म लेने लगी। फिर क्या सिद्धार्थ ने उक्त स्थल को नाम दिया 'खुरपी नेचर विलेज' जहां गो पालन, मछली पालन, बत्तख पालन के साथ ही तालाब में उन्होंने मोटर बोट की व्यवस्था कर दी।
जहां आस्ट्रेलियन पक्षी, खरगोश देसी व विलायती मुर्गियों की प्रजाति कुत्ते, घोड़े, ऊंट का प्रबंध कर दिया। जिससे अब वहां पर्यटकों की आमद भी होने लगी। जिससे खुरपी नेचर विलेज आज गाजीपुर में एक मिनी पर्यटन स्थल का स्वरूप अख्तियार कर लिया है।
कुछ इस तरह से सिद्घार्थ ने गांव की बदली तस्वीर
सिद्धार्थ राय ने बताया कि दुग्ध व्यवसाय के लिए गो पालन हमारा प्रमुख उद्देश्य रहा लेकिन उसके बाद गोबर के अनाज से मुर्गी पालन, गोबर के ही अवशेष से मछली पालन, मछलियों को चलाने के लिए बत्तख पालन व उसके बाद मोटर बोट डाल देने से हमारा कार्यस्थल अपने आप में एक बड़े पार्क का स्वरूप अख्तियार कर लिया।
जिसे हमने बाद में पूर्ण रूप से व्यवसायिक स्वरूप देते हुए आसपास गांव वालों की मदद से उनके ऊपज को बाजार देने का काम करने लगे। देखते देखते स्थिति यह हो गई कि 'खुरपी नेचर विलेज' आसपास के युवाओं के लिए स्वरोजगार के परिपेक्ष में प्रयोगशाला का काम करने लगा। जहां प्रतिदिन दर्जनों युवाओं को गांव में उपलब्ध होने वाले रोजगारों की बारीकियां विस्तृत रूप से समझाई जाती हैं।
सिद्धार्थ ने कहाकि बड़े पैकेज पर काम करने के बाद केंद्रीय मंत्री के निजी सचिव के रूप में काम करने का अनुभव मिला। मैं चाहता तो बड़े महानगरों में कहीं बस गया होता। लेकिन जिले के युवाओं के भविष्य के प्रति मेरी जागरूकता ने मुझे गांव में रोके रखा जिससे मैं आज काफी सुकून महसूस करता हूं।
Updated on:
12 Apr 2023 04:28 pm
Published on:
12 Apr 2023 04:27 pm
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