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स्पोर्ट्स कोच का कोरोनाकाल में बुरा हाल, कोई समोसा-चाय बेचने को मजबूर, तो कोई बन गया कारपेंटर

UP Sports coaches unemployed in pandemic. पहले कोचेस महामारी आने से पहले स्कूल-कॉलेजों में छात्रों को कॉन्ट्रैक्चुअल आधार पर प्रशिक्षण दे रहे थे, लेकिन अब इनमें से कई समोसा और चाय बेच रहे हैं, तो कोई कारपेंटर का काम कर रहा है।

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लखनऊ

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Abhishek Gupta

May 27, 2021

Sports Coach

Sports Coach

लखनऊ. पिछले साल मार्च में कोरोनावायरस (Coronavirus in UP) महामारी के प्रकोप और इस साल कोविड की दूसरी लहर ने उत्तर प्रदेश में कई अनुभवी और प्रतिभाशाली स्पोर्ट्स कोचों (Sport Coaches) को कंगाली की कगार पर ला दिया है। अपना व अपने परिवार का पेट पालने के लिए वह ऐसे काम करने को मजबूर हैं, जिसकी शायद उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी। कई युवाओं को ट्रेन कर उन्होंने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बनाने वाले यह कोचेस महामारी आने से पहले स्कूल-कॉलेजों में छात्रों को कॉन्ट्रैक्चुअल आधार पर प्रशिक्षण दे रहे थे, लेकिन अब इनमें से कई समोसा और चाय बेच रहे हैं, तो कोई कारपेंटर का काम कर रहा है। सवाल पेट और परिवार के पालन-पोषण का है, तो ऐसे में उन्हें इस वक्त रुपए कमाने का जो विकल्प मिल रहा है, वो उसे अपना रहे हैं। देखें क्या हैं उनकी स्थिति।

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कारपेंटिंग का काम कर 300 रुपए कमा रहे-

लखनऊ में नीलमठा निवासी संजीव कुमार गुप्ता एक विशेषज्ञ फेंसर (तलवारबाज) हैं। लेकिन इन दिनों अपनी जीविका चलाने के लिए वह कारपेंटिंग का काम (बढ़ईगीरी) करने के लिए बाध्य हैं। इससे प्रति दिन उन्हें 300 रुपये मिलते हैं। वह पांच बार के पदक विजेता हैं और एनआईएस पटियाला से तलवारबाजी में डिप्लोमा धारक हैं। उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी में कई वर्षों तक कोच के रूप में काम किया। उनकी 12 साल की बेटी ख्याति गुप्ता भी तलवारबाजी में राष्ट्रीय स्वर्ण पदक विजेता हैं। यहां सबसे दुखद बात यह है कि ख्याति के सपने भी बिखरने शुरू हो गए हैं। संजीव उसे बड़े खेलों के लिए पोलैंड नहीं भेज पा रहे हैं।

मांगी मदद, लेकिन नहीं आया जवाब-

उन्होंने यूपी के पूर्व राज्यपाल राम नाइक से भी मदद मांगी थी। साथ ही मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा था, लेकिन कोई मदद नहीं मिली और ख्याति घर पर ही फंसी रहीं। स्कूल फीस न जमा कर पाने के कारण उसे कक्षा 5 का रिजल्ट सर्टिफिकेट भी नहीं दिया गया है। संजीव के 14 वर्षीय बेटे दिव्यांश को तलवारबाजी में गहरी दिलचस्पी है, लेकिन अपने परिवार की मौजूदा स्थिति के कारण उसकी अब रुचि कम हो रही है। संजीव ने सरकार से अनुरोध किया कि वह कठिन समय में अपने परिवार की मदद करने के लिए उन्हें कहीं स्थायी नौकरी दें क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर यूपी का प्रतिनिधित्व किया है।

चाय बेचने के लिए मजबूर मुक्केबाज-

लखनऊ के ही मुक्केबाज मोहम्मद नसीम कुरैशी (56) ने राष्ट्रीय स्तर पर यूपी का प्रतिनिधित्व किया है। लॉकडाउन से पहले वह बच्चों को ट्रेन करते थे। लेकिन अब वह चाय बेचने के लिए मजबूर हैं। उन्होंने अनुबंधित कोच के रूप में अपने 32 साल के लंबे करियर में कई राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाजों को प्रशिक्षित किया। उन्होंने बताया कि उनके छात्रों ने उनसे चाय बेचने पर नाराजगी जताई और आर्थिक मदद की पेशकश की। कुरैशी विकल्प ढूंढ रहे हैं और सरकार से मदद करने का अनुरोध कर रहे हैं।

समोसा बेच रहे तीरंदाज-

तीरंदाजी के कोच महेंद्र प्रताप सिंह (44) अपने परिवार के लिए रोटी का इंतजाम करने के लिए बाराबंकी में अपने घर के बाहर समोसा बेच रहे हैं। उन्होंने कहना है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन युवा तीरंदाजों को संवारने में लगा दिया, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान भी बनाई। कभी-कभी उन्हें खेल को अपना करियर बनाना ही गलत फैसला लगता है। उन्होंने राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस), कोलकाता से तीरंदाजी में डिप्लोमा प्राप्त किया। उन्हें यूपी खेल निदेशालय और भारतीय सैन्य अकादमी में तीरंदाजी कोच के रूप में 18 साल का अनुभव है। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर 8 साल तक यूपी का प्रतिनिधित्व भी किया। पैसे की कमी के कारण, उनके दो बच्चे देवांश (8) और वेदांश (5) अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखने में असमर्थ हैं और अब घर पर अपने पिता की सहायता कर रहे थे।

यूपी खेल निदेशक ने दिया आश्वासन-
यूपी के खेल निदेशक आरपी सिंह ने ऐसे मामलों का संज्ञान लिया है। उन्होंने आश्वासन दिया है कि कॉन्ट्रैक्चुअल स्टाफ को वरीयता निश्चित रूप से दी जाएगी। उन्होंने कहा कि आउटसोर्सिंग पर कर्मचारियों को काम पर रखने का निर्णय सभी सरकारी विभागों में लागू किया गया था और कॉन्ट्रैक्चुअल कोचों को आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से चयन के लिए नामित पोर्टल के माध्यम से आवेदन करना चाहिए। उन्होंने कहा वह निश्चित रूप से संविदा कर्मचारियों को वरीयता देंगे।