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विवेक हत्याकांड के आरोपी थे थाने के कारखास

वसूली के लिए लखनऊ के हर थाने में होते हैं कारखास  

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लखनऊ

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Anil Ankur

Oct 03, 2018

bikaner police

vivek murder case: each thana have Karkhas for ill legal recovery

लखनऊ। विवेक हत्याकांड के आरोपी सिपाहियों को पुलिस क्यों बचा रही थी, इसका बड़ा ही रोचक मामला प्रकाश में आया है। दरअसल दोना सिपाही थाने से फ्री हैंड छोड़ा दिए गए थे और वे 24 घंटे वसूली अभियान में लगे रहते थे। उन्हें थाने में कारखास का नाम दिया गया था। खास बात यह है कि ऐसे कारखास सिपाही पूरे लखनऊ के हर थाने में हैं जो सिर्फ अवैध वसूली में लगाए जाते हैं।

थाने की अवैध कमाई का मैन जरिया होते हैं कारखास
राजधानी के ज्यादातर थाने के 'कारखास' की भूमिका वहां के दरोगा के नजदीकी के रूप में होती है। इलाके में होने वाली वसूली और थाने के खर्च का पूरा लेखा जोखा इनके पास होता है। आमतौर पर सादे कपड़ों में रहने वाले 'कारखास' का रुतबा थानेदार से कम नहीं होता। मनचाही ड्यूटी लगवानी हो या मलाईदार चौकी पर पोस्टिंग, 'कारखास' की मर्जी के संभव नहीं। ये कहिए कि इनके बिना थानेदार कमाई नहीं कर पाते हैं।

बिना कारखास के नहीं चलते थाने
शायद ही यूपी का कोई थाना हो जहां कारखास नाम का पद न हो। यूं कहिए कि थाने इनके बिना नहीं चलते। हर थाने में वसूली के लिए किसी न किसी सिपाही या दीवान को बतौर 'कारखास' रखा जाता है। थाने से होने वाली पूरी वसूली की कमान इनके पास होती है। साहबों के लिए पैकेट तैयार करने से लेकर थाने के मद में होने वाले खर्च का ब्योरा भी कारखास ही रखता है। हालात यह हैं कि भले ही थानेदार का तबादला हो जाए, लेकिन 'कारखास' बरसों तक जमा रहता है। इस बात को पुलिस के आला अफसर भी जानते हैं। यही कारण है कि विवेक हत्या कांड के इन आरोपियों को पुलिस बचाने में लगी है।

हत्यारों के खाते में मदद करने वाले भी हैं दोषी
किसी अपराधी को मदद करना अपराध की श्रेणी में आता है। विवेक हत्याकांड के आरोपियों को आर्थिक मदद देने वाले लोगों की भी पड़ताल करने की मांग विभिन्न राजनीतिक दलों ने उठाई है। रालोद के प्रवक्ता अनिल दुबे ने कहा है कि जो लोग मदद कर रहे हैं और सिपाही के खाते में लाखों रुपए जमा करवा दिए हैं। उन्हें भी 120 बी का मुजरिम बनाया जाए।