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द्वापर में हुई थी इस फोक डांस की शुरुआत, जिमनास्ट की तरह करतब दिखाते हैं युवक

बरसाने की लट्ठमार होली तो आपने देखी और सुनी होगी लेकिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके की लट्ठ मार दिवारी भी कम रोमांचक नहीं होती है।

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Mahoba News

महोबा. बरसाने की लट्ठमार होली तो आपने देखी और सुनी होगी लेकिन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाके की लट्ठ मार दिवारी भी कम रोमांचक नहीं होती है। बुंदलखंड के जनपद महोबा, हमीरपुर, जालौन, बांदा सहित अन्य इलाकों में परंपरागत 'दिवारी नृत्य' की धूम मची हुई है। इस नृत्य में ढोलक की थाप पर थिरकते जिस्म के साथ लाठियों का अचूक वार करते हुए युद्ध कला को दर्शाने वाले नृत्य को देख कर लोग दांतों तले अंगुलियाँ दबाने पर मजबूर हो जाते हैं। दिवारी नृत्य करते युवाओं के पैंतरे देख कर ऐसा लगता है कि वे युद्ध के मैदान पर अपने शौर्य का प्रदर्शन कर रहे हों।

शरीर पर पहनते हैं रंग-बिरंगे कपडे

इस नृत्य को करने वाले हांथों में लाठियाँ, शरीर पर रंगीन नेकर के ऊपर कमर में फूलों की झालर, पैरों में घुँघरू बांधे जोश से भरे दिखाई देते हैं। ये नौजवान बुन्देलखंडी नृत्य दिवारी खेलते हुए परंपरागत ढंग से हर वर्ष अपने उत्साह का प्रदर्शन करते हैं। दिवारी नृत्य में लट्ठ कला का बेहतरीन नमूना पेश किया जाता है। वीर रस से भरे इस नृत्य को देख कर लोगों का खून उबाल मारने लगता है और जोश में भर कर बच्चों से लेकर बूढ़े तक थिरकते दिखाई देने लगते हैं। यह नृत्य भगवान् श्रीकृष्ण के समय की कला मानी जाती है।

कंस वध पर हुई थी शुरुआत

माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने जब कंस का वध किया था तब उत्साह में बुंदेलखंड में दीवारी नृत्य खेली गई थी जो आज भी बदस्तूर जारी है। बुंदेलखंड के इलाकों में ये दीवारी नृत्य टोलियों में होता है। अपने-अपने गांवों की टोलिया बनाकर सभी वर्गों के लोग आत्मरक्षा वाली इस कला का प्रदर्शन करते है। आपस में लाठिया से एक दूसरे पर वार और बचाव करते दिखाई देते है। बुन्देलखण्ड के इस परंपरागत लोक न्रत्य दिवारी में जिमनास्टिक की तरह के करतब भी दिखाई देते हैं।

गोवर्धन पर्वत से भी है सम्बन्ध

इस नृत्य के शुरुआत के सम्बन्ध में एक अन्य मान्यता भी है। कहते हैं कि जब द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाया था तब ब्रजवासियों ने खुश हो कर दिवारी नृत्य कर अपने उल्लास का प्रदर्शन किया था। बुंदेलखंड में धनतेरस से लेकर दीपावली के दूज तक गांव-गांव में दिवारी नृत्य खेलते नौजवानों की टोलियाँ घूमती दिखाई देती है।