
महोबा. अगर इरादों में दम हो तो ज़िन्दगी की हर मुश्किल आसान बन जाती है। महोबा के चरख़ारी कस्बे में रहने वाली शहीद सैनिक की पत्नी रमादेवी ने अपने जज्बे और हौंसले से कठोर ज़िन्दगी को भी सरल बना दिया। आज मदर्स डे पक हम आपको एक ऐसी मां कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने पति की शहादत के बावजूद खुद को टूटने नहीं दिया और बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बना दिया। इस मां का त्याग और बलिदान लोगों के लिये मिसाल है।
महोबा के चरख़ारी कस्बे के मोहल्ला छोटा रमना में रहने वाली रमादेवी पति की शहादत के बाद कमजोर नहीं पड़ीं। फौजी पति राजेन्द्र सिंह सेंगर की मौत के बाद परिवार जो कमजोर नहीं होने दिया। पांच पुत्रियों और दो पुत्रों को को आत्मनिर्भर और शिक्षित बनाया। पति की विरासत में मिली पेंशन और खेती की खुद की देखभाल की। आज भी रामादेवी अपने परिवार की ताकत बनी हुई हैं।
1980 में शहीद हो गये थे पति
जनपद के बम्होरीकलां निवासी कक्षा आठ तक पढ़ी रमादेवी का विवाह 1961 में चरख़ारी के छोटा रमना निवासी फौजी राजेन्द्र सिंह के साथ हुआ था। फ़ौज की सेवा करते हुए वह सूबेदार के पद तक पहुंचे। 1980 में गंगटोक में वह शहीद हो गए।
बच्चों को शिक्षित कर बनाया काबिल
पति की शहादत के बाद रमादेवी ने अपने जज्बे को कायम रखा और बच्चों की बेहतर परवरिश की। कम शिक्षित होते हुए अपनी पुत्रियों और पुत्रों को बेहतर शिक्षा दी। उनकी बड़ी बेटी साधना सिंह एमए, एलएलबी तक पढ़ी है, वहीं अंजू, मंजू, मधु और कविता भी पोस्ट ग्रेजुएट हैं। पुत्रियों से छोटे पुत्र जितेंद्र सिंह सेंगर को वर्ष 2000 में अधिवक्ता और सबसे छोटे पुत्र नितेन्द्र को इंजीनियर बनने में मदद की।
एक बेटा है बीजेपी का जिलाध्यक्ष, दूसरा इंजीनियर
इस मां के कठिन परिश्रम और संस्कारों का ही नतीजा है कि आज सभी अपने पैरों पर खड़े हैं। जितेंद्र सिंह सेंगर वर्तमान में महोबा जनपद के बीजेपी जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी को भी बखूबी निभा रहे हैं। रमादेवी ने अपनी पुत्रियों की शादियां भी बड़ी ही धूमधाम से की और आज भी उम्र के इस पढ़ाव में नाती, नातिनों से भरे पूरे परिवार के बीच रमादेवी अभी भी सक्रिय है। आज भी रमादेवी अपने परिवार को अपनी सलाह और सुझाव देती हैं। रमादेवी के इस हौंसले से ज़िन्दगी में कभी न हारने की सीख मिलती है।
Published on:
13 May 2018 12:30 pm
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