
राहुल गांधी, अखिलेश यादव, मायावती
महराजगंज. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को शिकस्त देने के लिए निसंदेह लोग चाहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर गैर भाजपा दलों का महागठबंधन बने। कांग्रेस भी इसके लिए इच्छुक है और इसी सोच के तहत यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने आगे बढ़कर पहली भी की।
देश के कई प्रदेशों में गैर भाजपा दलों से कांग्रेस का गठबंधन करीब करीब फाइनल टच में है लेकिन यूपी में सपा और बसपा कांग्रेस को तीसरे नंबर की पार्टी से भी निम्न मानकर उसे खैरात में कुछ सीटें ही देना चाहती हैं।यानी अधिकतम चार या पांच! सपा बसपा के इस अड़ियल रवैये से अब यह संभावना बलवती दिख रही है कि कांग्रेस शायद ही सपा बसपा की शर्तों पर यूपी में गठबंधन का हिस्सा बनें और अब तो इनके अड़ियल रुख से प्रदेश के कई बड़े कांग्रेसी भी मानने लगे हैं कि यूपी में गठबंधन का चक्कर छोड़ कांग्रेस को अपने बूते चुनाव की तैयारी करनी चाहिए।
सपा बसपा और कांग्रेस के इतर आम लोगों की राय में भी बिना कांग्रेस के कोई भी गठबंधन बेमानी है।महराजगंज के अधिवक्ता मुकेश सिन्हा का कहना है कि सपा के अखिलेश हों या मायावती पीएम मोदी के खिलाफ खुलकर कभी नहीं मुंह खोल पाएं हैं। सपा के पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह तो खुलकर भाजपा के पक्ष में कई बार खड़े दिखाई पड़े हैं तो मायावती का भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने का इतिहास रहा है।आज के हालात में इन दोनों दलों के भाजपा को शिकस्त देने का दावा भरोसे मंद नहीं लगता।उनका कहना है कि कांग्रेस हो सकता है अकेले दम पर भाजपा को शिकस्त न दे पाए लेकिन सारा देश देख रहा है कि पीएम मोदी और भाजपा पर अकेले राहुल गांधी ही हमलावर हैं।उनका कहना है कि 2014 के चुनाव परिणाम और हाल ही यूपी के तीन चार उप चुनाव परिणाम से सपा बसपा का इतराना गैर मुनासिब है और इसे 2019 में सीटों के बंटवारे का पैमाना नहीं माना जाना चाहिए।
कुछ इसी तरह की राय समाजसेवी सुधेश मोहन भी रखते हैं।उनका कहना है कि गठबंधन को लेकर कांग्रेस के प्रति सपा बसपा का रवैया अच्छा नही है।उनका नजरिया घमंडी जैसा है।लोकसभा चुनाव में जनता का रुख यदि भाजपा के खिलाफ हुआ तो वह कांग्रेस के पक्ष में जाएगी न कि सपा बसपा के।उनका कहना है कि इन दोनों दलों के कांग्रेस को गठबंधन का हिस्सा बनाने की शर्त को देखकर लगता है कि कहीं इनकी नियत भाजपा को लाभ पहुंचाने की तो नहीं है?
2007 में कांग्रेस विधायक रहे यूपी कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ईश्वर चंद शुक्ल कहते हैं कि किसी भी गठबंधन में शामिल होने से कांग्रेस का नुकशान ही हुआ है।1989 में विधानसभा में कांग्रेस के 95 विधायक थे।एनडी तिवारी ने सभी विधायकों को मुलायम के हवाले कर दिया और तभी से कांग्रेस का पराभव काल शुरू हुआ।1996 में कांग्रेस बसपा गठबंधन के दौर में जिले स्तर पर कांग्रेस संगठन बिखर गया।उसके बाद के चुनाव दर चुनाव में कांग्रेस को शिकस्त मिलती गई।उन्होंने कहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा के साथ कांग्रेस का गठबंधन भारी भूल थी।कांग्रेस अकेले लड़ी होती तो कम से कम अपनी 27 सीटें बचाने में कामयाब होती ही।उनका कहना है कि आज पूरे देश में भाजपा विरोधी लहर है।लोग कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद हो रहे हैं और यूपी में सपा बसपा दिवा स्वप्न देख रहे हैं।उन्होंने कहा कि उनके आकलन में पूर्वी उत्तर प्रदेश की 27 सीटों में पडरौना महराजगंज बनारस देवरिया डुमरियागंज ऐसी सीटे हैं जहां कांग्रेस सपा बसपा से बहुत मजबूत है। बहरइच कैसरगंज बलरामपुर में भी कांग्रेस की स्थति बेहतर है।कहा कि सपा बसपा पता नही किस आकलन से कांग्रेस को अपने से कमजोड़ मान रहे हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता नर्वदेश्वर शुक्ल कहते हैं कि 2009 में कांग्रेस किस गठबंधन का हिस्सा थी जो उसे 22 सीट जीतने में सफलता मिली थी। गठबंधन के सवाल पर सपा बसपा के अड़ियल रुख पर अब तो आम कांग्रेसियों की राय है कि कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा न बने तो अच्छा है।
By- Yashoda Srivastava
Published on:
19 Jun 2018 10:31 am
बड़ी खबरें
View Allमहाराजगंज
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
