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नहीं देना बलि तो मंदिर में ढील दें, समिति करेगी बकरी का पालन

छपरा वाली माता की बलि प्रथा है खास, नौ दिन जवारे की स्थापना के साथ मां की सेवा कर रहे सेवक

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नहीं देना बलि तो मंदिर में ढील दें, समिति करेगी बकरी का पालन

नहीं देना बलि तो मंदिर में ढील दें, समिति करेगी बकरी का पालन

मंडला. बंजर नदी व सुरपन नदी के संगम स्थल हिरदेनगर में स्थित छपरा वाली माता में नवरात्र पर जवारे स्थापित कर आराधना की जा रही है। पिछले 2 वर्षों से कोरोना संक्रमण के कारण नवरात्र पर अनुष्ठान नहीं हो सकें। जिसके कारण इस बार श्रद्धालुओं की भीड़ भी लग रही है। छपरा माता का मंदिर बलि प्रथा के कारण भी जिला के साथ अलग महत्व रखता है। यहां हर माह एक सैंकड़ा से अधिक बकरी की बलि दी जाती है। श्रद्धालु अपनी मन्नते पूरी होने पर बलि देते हैं। बहुत से लोग होते हैं जो मांसाहार का सेवन नहीं करते ऐसे श्रद्धालु मिठाई, मेवा भी भेंट करते हैं। मंदिर समिति के सदस्यों ने बताया कि जो श्रद्धालु बलि नहीं देना चाहता वह माता को बकरी भेंट कर मंदिर ही छोड़ सकता है। जिसे समिति द्वारा मंदिर से दूर बकरी को पालने के लिए रख देते हैं। कुछ माह में लगभग 12 बकरी को समिति के संरक्षण में पाला जा रहा है। इस व्यवस्था को श्रद्धालुओं ने अच्छी पहल भी बताई है।


वैसे तो यहां पूजा कराने के लिए कोई पूजारी नहीं है। श्रद्धालु स्वयं पूजा करते हैं। लेकिन विधि बताने के लिए मंदिर समिति के सदस्य मौके पर मौजूद रहते हैं। इस मंदिर में महिलाएं भी प्रवेश नहीं करती हैं। बताया गया कि ग्राम हिरदेनगर में छपरा वाली दाई का स्थान स्थानीय क्षेत्र समेत पूरे जिले के भक्तों के लिए आस्था का केन्द्र है। यहां सागौन वृक्ष के नीचे माता का स्थान है। ग्राम के बुजुर्ग बताते है कि यह स्थान सैकड़ों वर्षो से है। पूर्व में यहां केवल छोटी सी मढिय़ा स्थापित थी। जैसे जैसे लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती गई तो मढिय़ा ने मंदिर का भव्य स्वरूप ले लिया। लेकिन गौर करने वाली बात है कि छपरा वाली दाई का कोई भी स्वरूप नहीं है। निराकार रूप में माता यहां स्थापित है। सिंहासन तो बना हुआ है किन्तु वह खाली है इसकी ही पूजा की जाती है।
मंदिर में दूर दूर से श्रृद्धालु पूरे वर्ष भर पहुंचते है और मन्नतें मांगते हैं। मन्नत मांग व मंदिर परिसर में लाल चूनरी बांध देते हैं। जिसे समिति के सदस्य नवरात्र के दिनो में खोल देते हैं। स्थानीय लोग बताते है कि मनोकामनाएं पूर्ण होने पर श्रृद्धालु बलि चढ़ाते हैं। अगर किसी श्रृद्धालु को बलि से परहेज है तो वह मलिदा, मिठाई, नारियल अगरबत्ती माता को अर्पित करता है। परंतु बरई व पिलई यहां का विधान है जो पूरे वर्ष भर चलता है।


महिलाओं व लड़कियों का प्रवेश वर्जित
मंदिर समिति के सदस्य विलाष दूबे का कहना है किछपरा वाली दाई में लड़कियों का व महिलाओं का आना वर्जित है और उन्हेें यहां चढ़ा हुआ प्रसाद भी ग्रहण करने की अनुमति नहीं होती है। वर्षों से चली आ रही परंपरा निभाई जा रही है। कन्याएं मंदिर में आ सकती है तथा पुरूष भी सूर्य ढलने के पूर्व ही प्रसाद ग्रहण कर सकते है। यहां पर चैत्र व शारदेय नवरात्र में किसी भी प्रकार की बलि वर्जित है । नवरात्र के समय लगभग आधा सैकंड़ा खप्पर जवारे, कलश बोए गए हैं। अष्टमी को हवन पूजन के बाद कन्या भोज किया जाएगा।