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जन औषधि केन्द का नही मिल रहा लोगों को लाभ

जिले में खोले गए थे मात्र दो केन्द्र

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जन औषधि केन्द का नही मिल रहा लोगों को लाभ

जन औषधि केन्द का नही मिल रहा लोगों को लाभ

मंडला. गरीबों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र संचालित किए जा रहे हैं। केन्द्र सरकार द्वारा इन केन्द्रों को खोलने की शुरुआत 2016 में की गई थी लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज योजना शुरू हुए 6 साल बाद भी जिले में मात्र दो केन्द्र एक अंजनिया और आज से कुछ महीने पहले ही लालीपुर चौराहे में एक केन्द्र खोला गया है, लेकिन समुचित प्रचार-प्रसार के अभाव में इनका लाभ आमजनों को नहीं मिल पा रहा है। प्राइवेट और सरकारी डॉक्टर सस्ती जेनेरिक दवाओं की जगह महंगी ब्रांडेड कंपनियों की दवाएं मरीजों लिख रहे हैं, जिनसे इन औषधि केन्द्रों का संचालन करने वाले भी परेशान हैं।
फार्मूला नहीं कंपनी का है चलन
कई जरूरतमंद जन औषधि केंद्रों तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं और जो पहुंच रहे हैं वे डॉक्टर की लिखी ब्रांडेड दवा का रैपर दिखाकर दवा मांगते हैं। हालांकि केंद्र संचालक रैपर का फार्मूला देखकर खरीददार को सस्ती जेनेरिक दवा देने की कोशिश करते हैं। यही नहीं जन औषधि केन्द्रों में भी कुछ ब्रांडेड कंपनियों की दवाएं भी रखी जा रही है, संचालकों का कहना है कि एक तो कोई ग्राहक यहां नहीं आता, कुछ न कुछ बिक्री बनी रहे इसलिए जेनेरिक दवाओं के साथ कुछ ब्रांडेड दवाएं भी रखना पड़ता है। वहीं लालीपुर स्थित जन औषधि केन्द्र के संचालक सुमित कुमार साहू ने बताया कि कोई भी दवाएं एक विशेष फार्मूला में बनाई जाती है। प्राइवेट कंपनियों उन दवाओं को अपनी कंपनी के नाम के साथ बेचती हैं, एक ओर ये प्राइवेट कंपनियां बाजार में दवाएं बेचकर लाभ कमाती हैं तो वहीं दूसरी ओर प्राइवेट कंपनियों की ही दवाएं लिखने के लिए प्राइवेट क्लिनिकों के डॉक्टरों को अच्छा खासा कमीशन दिया जाता है और इसी कमीशन के चक्कर में प्राइवेट और सरकारी डॉक्टर बाजार में मिलने वाली महंगी दवाएं ही लिख रहे हैं।
दुकान खोलने से लेकर दवाएं मिलने में परेशानी
जन औषधि केंद्र खोलने के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया करना पड़ती है जिसमें कई तरह की कागजी खानापूर्ति करना होती है, इसके बाद यदि लाइसेंस मिल भी गया तो जरूरी दवाएं बुलाने में परेशानी होती है, वर्तमान में मंडला में जेनेरिक दवाएं मुम्बई और गुजरात से बुलाना पड़ रही है जिसमें काफी समय तो लगता ही है साथ ही मांग के अनुसार दवाएं भी नहीं मिल पा रही हैं। इसी के साथ जन औषधि केंद्र संचालक का कहना है शहर के अंदर यदि दुकान लेता तो लाखों रुपए की दुकान की पगड़ी देना पड़ती और फिर किराया भी महंगा होता, इसलिए लालीपुर चौराहे के एक कोने में किराये से दुकान लेकर संचालित कर रहा हूं। उनका कहना है कि रोजाना बहुत कम ही लोग दवाएं लेने के लिए आते हैं, जिससे कमीशन भी बहुत कम निकल पाता है चूंकि फार्मासिस्ट की डिग्री लेकर यही काम कर सकते हैं, स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि वह डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखने के लिए प्रेरित करें, ताकि गरीबों को सस्ती दवाएं मिल सके और जन औषधि केन्द्रों का संचालन भी भलीभांती हो सके।
दवाओं की कीमतो में भारी अंतर
जो ओआरएस बाजार में 30 से 40 रुपए में मिलता है उसी फार्मूले का ओआरएस जन औषधि केन्द्र में महज 10 रुपए में मिल रहा है। सेनेटरी पेड जो महंगी मेडिकल दुकान में 35 से 40 रुपए में दी जा रही है, वहीं औषधि केन्द्रों में मात्र 10 रुपए में मिल जाती है। बाजार में विभिन्न कंपनियों का ग्लूकोज 40 से 50 रुपए में मिल रहा है जो जन औषधि केंद्र में मात्र 30 रुपए में मिल जाएगा। गर्मियों में ही पसीने वाली खुजली से निजात के नाम पर जो पाउडर 100 से 120 रुपए में बेचे जा रहे हैं। उसी फार्मूले का क्लोट्रीमिजोल डस्टिंग पाउडर मात्र 55 रुपए में मिल सकता है। अजीथोमाईसैन टेबलेट 71 रुपए में मिल रही है वही जन औषधि केन्द्र में मात्र 42 रुपए में उपलब्ध है। इसी तरह कई अन्य जरूरी दवाएं जो बाजार में विभिन्न कंपनियों के नाम से महंगे दामों में बेची जा रही है उसी फार्मूले की दवाएं जन औषधि केन्द्र में आधे से भी कम कीमत में उपलब्ध हैं लेकिन एक ओर जिले में सरकारी और प्राइवेट अस्पताल, क्लीनिक के डॉक्टर जेनेरिक दवाएं नहीं लिख रहे हैं वहीं जन औषधि केन्द्रों में भी पर्याप्त दवाओं का टोटा बना रहता है।