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National Monkey Day: वृंदावन के लोगों के लिए मुसीबत बने हैं बंदर, समाधान के लिए हेमा मालिनी ने उठाया था संसद में मुद्दा, देखें वीडियो

locationमथुराPublished: Dec 14, 2019 11:15:34 am

Submitted by:

suchita mishra

 
स्थानीय लोगों का कहना बंदरों के आतंक के कारण बच्चों को घर कैद करना पड़ता है।एक साल में एक ही अस्पताल में 1400 लोगों को लगे रैबीज के इंजेक्शन।

National Monkey Day

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मथुरा। वृंदावन में बंदरों का आतंक किसी से छिपा नहीं है। यहां के बंदर स्थानीय लोगों से लेकर श्रद्धालुओं तक के लिए मुसीबत बने हुए हैं। उत्पाती बंदर कभी भी किसी का चश्मा, पर्स, मोबाइल आदि कीमती सामान छीन लेते हैं। कई बार उन पर जानलेवा हमला भी कर देते हैं। इस कारण तमाम लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। कुछ दिनों पहले मथुरा सांसद हेमा मालिनी ने बंदरों के आतंक का मुद्दा संसद में भी उठाया था। लेकिन अभी तक फिलहाल इसके निदान की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी है।
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एक साल में 1400 लोगों को किया घायल
इस मामले में वृंदावन के रहने वाले रवि यादव बताते हैं कि वृंदावन के साथ-साथ मथुरा में भी अब बंदरों की समस्या बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि वे खुद इस समस्या को लेकर नगर निगम को समय समय पर अवगत कराते रहे हैं। मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुके हैं। मानवाधिकार आयोग को भी पत्र लिख चुके हैं। कुछ समय पहले उन्होंने आरटीआई लगाकर एक अस्पताल से जानकारी मांगी, तो पता चला कि एक ही अस्पताल में एक वर्ष के अंदर करीब 1400 मरीज ऐसे मिले जिन्हें बंदरों द्वारा घायल करने के कारण रैबीज का इंजेक्शन लगाया गया था। मथुरा सांसद हेमा मालिनी ने भी इस समस्या का मुद्दा संसद में उठाया था। वहीं वेटरनरी कॉलेज में भी एक सेमिनार में बंदरों के लिए सफारी बनाकर लोगों को राहत देने की चर्चा की गई। लेकिन इस तरह की योजनाएं समय के साथ आती जाती रही हैं। धरातल पर अभी तक ऐसा कोई काम नहीं हुआ है।
फ्रूटी के शौकीन हैं बंदर
वहीं सुनील गौतम ने जानकारी देते हुए बताया कि बंदरों का मुद्दा यहां काफी पुराना है, लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि इस समस्या से पीड़ित वृंदावन की जनता त्राहि त्राहि कर रही है। लेकिन राजनेता सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेंकने में व्यस्त हैं। उन्होंने कहा कि बंदरों के कारण हमें बच्चों को घरों में कैद करके रखना पड़ता है। वे खुली जगहों पर खेल नहीं सकते। सुनील गौतम ने बताया कि यहां के बंदर कब किसी सामान छीन ले जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता। पहले बंदर चने, बिस्किट वगैरह खाने के आदी थे, लेकिन आजकल फ्रूटी के शौकीन हैं। अगर आपका सामान बंदर ले गया है तो आपको पहले फ्रूटी देनी होगी, उसके बाद भी आपका सामान मिले या न मिले यह कहा नहीं जा सकता।
संसद में ये कहा था हेमा मालिनी ने
हेमा मालिनी ने संसद में ये मुद्दा उठाते हुए कहा था कि बंदरों के नाम को लोग मजाक में ले जाते हैं, लेकिन वृंदावन में ये गंभीर समस्या है। उन्होंने कहा कि कभी वृंदावन में घना जंगल होता था, जहां बंदर आराम से रहते थे, लेकिन अब केवल बिल्डिंग हैं। इस कारण भूखे बंदर खाने की तलाश में घरों में आतंक मचाते हैं। तीर्थयात्री बंदरों को फ्रूटी, कचौड़ी, मथुरा के पेड़े खिलाते हैं। इसके कारण बंदर बीमार पड़ गए हैं। वहां के डॉक्टरों ने बंदरों की संख्या कम करने के लिए स्टेरलाइजेशन किया। इस कारण बंदर हिंसक हो गए हैं। लोगों पर जानलेवा हमला करते हैं। बंदरों के कारण वृंदावन में काफी लोगों की मौत हो चुकी है। हेमा मालिनी ने कहा कि इंसानों के साथ जानवरों को भी इस धरती पर रहने का हक है। इसके लिए एक समाधान होना चाहिए। इसके लिए वन विभाग से ये प्रार्थना है कि वे मंकी सफारी बनाकर बंदरों को एक जगह रखने की व्यवस्था करें ताकि बंदरों और नागरिक दोनों की समस्या दूर हो। वहीं केंद्र सरकार से निवेदन है कि वे इस समस्या को गंभीरता से लेकर इस समस्या का समाधान करें।

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