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मथुरा-वृंदावन में मंदिर का पुजारी बनने के लिए चुकानी होती है कीमत, जानिए प्रक्रिया

ज्यादातर मंदिरों में सेवाधिकारी बनने के लिए मंदिर ट्रस्ट और बोर्ड को मोटी रकम देनी होती है।

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मथुरा

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Amit Sharma

Apr 18, 2018

Mathura Vrindavan

मथुरा। लाखों करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र ब्रज के मंदिरों में श्रद्धालु पूजा अर्चना करने के साथ ही मनौती पूरी होने पर मोटा चढ़ावा चढ़ाते हैं लेकिन इन मंदिरों का एक और पहलू है जहां ठाकुरजी पर आने वाले चढ़ावे के हिसाब से भगवान के मंदिरों की बोली लगती है और ज्यादा रकम देने वाले को ही मंदिर का मुखिया (पूजा-सेवा) का अधिकार दिया जाता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि गिरिराज धाम गोवर्धन में ज्यादातर मंदिरों में सेवाधिकारी बनने के लिए मंदिर ट्रस्ट और बोर्ड को मोटी रकम देनी होती है और भगवान का घर कहे जाने वाले मंदिर इनकी कमाई का जरिया बन कर रह गए हैं।

ये है मामला

ताजा मामला गोवर्धन के जतीपुरा में मुखारविंद मंदिर के निकट गिरिराज पर्वत के ऊपर बने श्रीनाथ जी मंदिर का है। यह मंदिर श्रीनाथ मंदिर ट्रस्ट के अधीन है और अब इस मंदिर की सेवा पूजा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। दरअसल इस मंदिर पर 60 साल से एक ही परिवार की तीन पीढ़ियां पूजा सेवा करते चली आ रही हैं। पहले परमानंद कौशिक पूजा सेवा करते थे उनके देहांत के बाद मंदिर बोर्ड ने उनके बेटों, वासुदेव कौशिक और गोविंद कौशिक को सेवा का अधिकार सौंप दिया। वासुदेव और गोविंद के अनुसार पिता के बाद से उनका ही परिवार मंदिर की सेवा पूजा करता है और उनके द्वारा मंदिर बोर्ड में निर्धारित सालाना रकम 10 प्रतिशत की वृद्धि के साथ जमा कराते हैं लेकिन इस साल मंदिर बोर्ड ने वासुदेव और गोविंद से सेवा लेकर नया एग्रीमेंट जतीपुरा के ही नरहरि कौशिक के नाम कर दिया है। मंदिर बोर्ड के इस फैसले को लेकर जहां वासुदेव और गोविंद सकते में हैं वहीं मंदिर बोर्ड के इस निर्णय का विरोध भी कर रहे हैं। बताया गया है कि वासुदेव और गोविंद कौशिक द्वारा करीब 70 हज़ार रुपए मंदिर बोर्ड में जमा करते थे लेकिन जतीपुरा निवासी नरहरि ने 1 लाख 51 हज़ार रुपए का ऑफर किया तो इस बार सेवा पूजा का मंदिर का एग्रीमेंट नरहरि के नाम कर दिया गया है।


इस बारे में जब मंदिर बोर्ड के भंडारी भगवान दास से बात की गयी तो उन्होंने बताया कि मंदिर बोर्ड के तिलकायत महाराज द्वारा ही मुखिया की नियुक्ति की जाती है। बकायदा मंदिर में सेवा पूजा करने का एग्रीमेंट होता है जो 11 महीने 29 दिन का होता है। उन्होंने बताया कि पूर्व में वासुदेव और गोविंद द्वारा मंदिर बोर्ड में 70-73 हज़ार रुपए सालाना जमा कराए जाते रहे हैं लेकिन एक लाख 51 हज़ार सालाना मंदिर बोर्ड को देने की शर्त पर इस बार मंदिर का एग्रीमेंट नरहरि कौशिक के नाम किया गया है।