
केपी त्रिपाठी
मेरठ। 92 साल की इस बुजुर्ग महिला के पास 200 साल पुरानी उर्दू में लिखी गीता है। इनका नाम कृष्णा है, जो सिर्फ उर्दू ही पढ़ना जानती हैं। ये बताती हैं कि इनके पास जो गीता है वह 92 वर्षीय कृष्णा के नाना ने अपने हाथों से लिखी थी, जो पाकिस्तान के डेरा गाजीखान के रहने वाले थे। कृष्णा बताती हैं कि उसके बाद उर्दू में लिखी इस गीता को कृष्णा के पिता जी अपने साथ बंटवारे के दौरान भारत ले आए। पिता से कृष्णा ने यह गीता ले ली और शादी के बाद अपने ससुराल लेकर चली आईं। उसके बाद से ये गीता उनके पास ही है। वह बताती हैं कि वे सिर्फ उर्दू ही पढ़ना और लिखना जानती हैं औरउनके पास सभी धार्मिक ग्रंथ उर्दू में लिखे हुए हैं।
नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ भी उर्दू में
वह बताती हैं कि वे नवरात्र के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ भी उर्दू में ही करती हैं। उनके पास उर्दू में लिखी दुर्गासप्तशती भी है। 92 वर्षीय कृष्णा का कहना है कि उनकी शिक्षा दीक्षा सब कुछ पाकिस्तान में हुई। उस दौर में प्राइमरी स्कूलों में उर्दू ही पढ़ाई जाती थी। इसलिए वे उर्दू में ही सब कुछ पढ़ती हैं और लिखती हैं। वे उर्दू में ही दुर्गा की आरती और संस्कृत के श्लोक लिखती और बोलती हैं।
नाना को उर्दू की गीता कलम से लिखने में लगे थे चार महीने
कृष्णा बताती हैं कि उनके नाना को स्याही की सरकंडे की कलम से उर्दू में गीता लिखने में चार महीने का समय लगा था। इसके लिए उनके नाना ने एक व्यक्ति को दो आना महीने पर नौकरी पर रखा था, जो हिंदी की गीता को पढ़ता था और कृष्णा के नाना उसको उर्दू में लिखते थे। चार महीने में जब नाना ने उर्दू में गीता को लिख लिया तो वे बहुत खुश हुए थे। इसके बाद वे प्रतिदिन अपने हाथ से लिखी उर्दू की गीता का पाठ किया करते थे।
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नाना के हाथ की लिखी गीता को कृष्णा ने छपवाया
बुजूर्ग कृष्णा कहती हैं कि नाना के हाथ की लिखी गीता के कागज जब बेकार होने शुरू हुए तो उन्होंने उस गीता के कागजों का ब्लाक बनवाया और उसे छपवा लिया। इस गीता को भी करीब 80 साल हो गए हैं। जो आज भी उनके पास विरासत के रूप में मौजूद हैं।
Published on:
02 Jan 2021 12:51 pm
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