
मेरठ। एक तरफ भारत और चीन सीमा (india china border) पर दोनों देश की सेनाएं एक-दूसरे पर संगीन ताने खड़ी हैं. तो वहीं दूसरी ओर भारत सरकार चीनी कंपनियों (Chinese Company) पर नरमी बरत रही है। अब भारत सरकार ने दिल्ली—मेरठ (Delhi Meerut Rapid rail contract) के बीच बन रही रैपिड रेल ट्रांजिट सिस्टम के लिए चीनी कंपनी को ठेका दिया है। सरकार के इस कदम की अलोचना आरएसएस से लेकर विपक्ष तक कर रहा है। सरकार अपने इस कदम से विपक्ष के निशाने पर आ गई है। जिसके चलते कांग्रेस सरकार पर निशाना साध रही है।
बता दें कि गत 12 जून को हुई बिडिंग में चीन की शंघाई टनल इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड सबसे कम रकम की बोली लगाने वाली कंपनी बनी है। इसके तहत दिल्ली-मेरठ रैपिड रेल ट्रांजिट कार्पोरेशन कॉरिडोर में न्यू अशोक नगर से साहिबाबाद के बीच 5.6 किमी तक अंडरग्राउंड सेक्शन का निर्माण होना है। इस पूरे प्रोजेक्ट का प्रबंधन नेशनल कैपिटल रीजन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (NCRTC) द्वारा किया जा रहा है। इसके लिए पांच कंपनियों ने बोली लगाई थी।
चीनी कंपनी एसटीईसी ने सबसे कम 1,126 करोड़ रुपये की बोली लगाई। भारतीय कंपनी लार्सन ऐंड टूब्रो ने 1,170 करोड़ रुपये की बोली लगाई। एक और भारतीय कंपनी टाटा प्रोजेक्ट्स और एसकेईसी के जेवी ने 1,346 करोड़ रुपये की बोली लगाई। आरएसएस ने भी इस मामले में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से मांग की है। जिसमें उन्होंने कहा है कि इस ठेके को तत्काल रद्द किया जाए। सूत्रों के अनुसार आरएसएस यह चाहता है कि महत्वपूर्ण परियोजनाओं में सिर्फ भारतीय कंपनियों को बोली लगाने का अवसर मिले।
गौरतलब है कि इन दिनों लद्दाख में भारत-चीन के बीच तनाव चरम पर है ऐसे में किसी चीनी कंपनी को ठेका मिलने से कई लोग सवाल उठा रहे हैं। चीन को लेकर सरकार पर निशाने पर रखने वाली कांग्रेस ने भी इसकी मुखालफत की है। कांग्रेस आरटीआई सेल के डा. संजीव अग्रवाल ने कहा कि इस ठेके को रद्द करते हुए इसे किसी भारतीय कंपनी को दिया जाए। उन्होंने कहा कि यदि सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान को सफल बनाना है तो ऐसी महत्वपूर्ण परियोजनाओं में चीनी कंपनियों को शामिल होने का अधिकार ही नहीं देना चाहिए।
Updated on:
16 Jun 2020 05:15 pm
Published on:
16 Jun 2020 05:12 pm
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