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राजस्थान चुनाव में बसपा के लिए इन दो जातियों को साध रहे मेरठ के ये दलित चिंतक

डा. सतीश के अनुसार राजस्थान विधानसभा 2008 के चुनाव में बसपा ने छह सीटें हासिल की थी।

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मेरठ

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Rahul Chauhan

Oct 26, 2018

केपी त्रिपाठी
मेरठ। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तीनों राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इन राज्यों में कभी प्रमुख पार्टियों में शुमार रही कांग्रेस और भाजपा को अन्य दलों से भी टक्कर मिल रही है। इन दोनों पार्टियों को जो सबसे अधिक टक्कर दे रही है वह है उप्र की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की पार्टी बसपा। इन तीनों राज्यों में पिछले चुनावों से ही बसपा अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है। दलित चिंतक और बसपा के लिए राजस्थान में दलित लोगों के बीच प्रचार कर लौटे मेरठ कालेज के प्रोफेसर डा. सतीश के अनुसार यदि राजस्थान में इस बार राजनैतिक स्थिति पलट जाए तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं होगा। उन्होंने पत्रिका संवाददाता केपी त्रिपाठी से राजस्थान की दलित राजनीति पर बात की।

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पिछले चुनाव में बसपा का रिपोर्ट कार्ड
डा. सतीश के अनुसार राजस्थान विधानसभा 2008 के चुनाव में बसपा ने छह सीटें हासिल की थी। जबकि उस समय एक दर्जन सीटों पर बसपा के प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे थे। बसपा को 2008 में करीब आठ प्रतिशत वोट मिले थे। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव 2013 में वह केवल तीन सीटें ही जीत सकी थी और पार्टी का मत प्रतिशत भी गिरकर छह प्रतिशत पर आ गया। बसपा को 1990 के विधानसभा चुनाव में 0.79 प्रतिशत वोट मिले वर्ष 1993 में बसपा ने 50 उम्मीदवार उतारे और वोट प्रतिशत 0.56 तक पहुंचा। राजस्थान में बसपा की चुनावी सफलता का सफर 1998 के विधानसभा चुनावों से शुरू हुआ। इस वर्ष पार्टी ने 108 स्थानों पर चुनाव लड़ा, जिसमें वोट प्रतिशत 2.17 रहा। साथ ही पार्टी के दो विधायक भी चुनकर आए। 2003 के चुनाव में बसपा ने 124 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। सीटें तो दो मिली पर वोट प्रतिशत लगभग चार तक पहुंच गया। दलित चिंतक डा. सतीश ने बताया कि इस बार बसपा राजस्थान में सधी हुई रणनीति के तहत काम कर रही है।

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दलित जाति में सर्वाधिक बैरवा और मेघवाल
राजस्थान में दलित आबादी 17 प्रतिशत है। इनके लिए राज्य में करीब 34 सीटें आरक्षित हैं। डा. सतीश कहते हैं इस 17 प्रतिशत में सर्वाधिक बैरवा और मेघवाल जातियों के वोट हैं, जो करीब 10 प्रतिशत के आसपास बैठते है। इन स्थानों पर बसपा की उपस्थिति उल्लेखनीय नहीं है। राज्य में अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित क्षेत्रों में से 32 पर अकेली भाजपा काबिज है। इस बार राज्य का दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक और घुमन्तू समुदाय सत्तारूढ़ दल से खासा खफा है। वह विकल्प चाहता है। उन्होंने बताया कि इस बार बसपा ने अपनी चाल बदली है। वे भी दलित वोटरों के बीच जाकर दलितों के हित की बात समझा रहे हैं।