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93 वर्षीय दादा की अर्थी को जब पोतियों ने दिया कंधा तो हर आंख हुई नम

हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार एक लड़की अर्थी को कंधा नहीं दे सकती है। लेकिन इस रूढि को मेरठ के गांव कपसाड़ में दो लड़कियों ने बदल दिया। जब उन्होंने अपने 93 साल के दादा की अर्थी को आगे बढ़कर उठाया और कंधे पर रखकर चली तो इसकी चर्चा पूरे गांव में हुई।

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मेरठ

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Kamta Tripathi

Nov 29, 2021

93 साल के दादा की अर्थी को कंधा देकर बदली रूढिवादी परंपरा, गांव से लेकर क्षेत्र में चर्चा

93 साल के दादा की अर्थी को कंधा देकर बदली रूढिवादी परंपरा, गांव से लेकर क्षेत्र में चर्चा

मेरठ। सरधना क्षेत्र के गांव कपसाड़ में दो पोतियों ने सदियों पुरानी रूढिवादी परंपरा को तोड़ दिया। उन्होंने अपने 93 साल के दादा की अर्थी को कंधा दिया। इतना ही नहीं बाद में उनकी चिता को मुखाग्नि भी दी। जिसकी चर्चा गांव में ही नहीं पूरे इलाके में हो रही है। समाज के लोग दोनों पोतियों की सराहना कर रहे हैं। सरधना के विख्यात आर्य भजनोपदेशक महाशय कर्ण सिंह के निधन के बाद से परिवार में गहरा शोक छा गया। परिवार के मुख्य सदस्य का गम उनके चेहरे पर साफ दिखाई दिया।

ये है पूरा मामला
कपसाढ़ गांव निवासी आर्यसमाजी व भजनोपदेशक कर्णसिंह का रविवार सुबह करीब साढ़े चार बजे देहावसान हो गया। उनकी पोती वंदना आर्य व अंजना आर्य काफी समय से आर्यसमाज की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। गांव कपसाड़ में पोतियों ने परंपराओं को तोड़ते हुए अपने 93 वर्षीय दादा का देहावसान होने पर उनकी अर्थी को कंधा दिया और अपने पिता के साथ मिलकर चिता को मुखाग्नि दी।

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इसके साथ ही वैदिक विधि विधान से कन्या गुरुकुल झिटकरी भामौरी प्रधानाचार्य आदेश शास्त्री के सान्निध्य में मंत्रपाठ करते हुए अंत्येष्टि कर्म संपन्न कराया। संपूर्ण अंत्येष्टि कर्म वैदिक विद्वान आचार्य देवपाल और डॉ. कपिल आचार्य की देखरेख में हुआ। इस दौरान गणमान्य लोग भी शामिल हुए। वहीं आचार्य देवपाल व डा. कपिल आचार्य ने बताया कि कर्ण सिंह ने जीवनभर आर्य समाज के सिद्धांतों का प्रचार प्रसार किया है। यही संस्कार उन्होंने अपने बच्चों में भी डाले