
हरियाली का सचः विकास के नाम पर भेंट चढ़ गर्इ यहां हरियाली, ताजी हवा के लिए तरस रहे लोग
मेरठ। जिले में पेड़ लगाने से ज्यादा उनकी कटाई तेज दर पर हो रही है, यानी पौधारोपण उस गति से नहीं हो रहा है, जिस गति पर पेड़ों को काटा जा रहा है। यदि वनों की कटाई इसी तरह बनी रही तो गर्मी के मौसम में हालत और खराब हो जाएगी। बाढ़, भूस्खलन और तूफान आदि में वृद्धि के अलावा पूरे वर्ष के दौरान मौसम शुष्क रहेगा।
इस हाइवे पर काटे गए 70 हजार पेड़
वन विभाग के आंकड़ों की मानें तो दिल्ली-हरिद्वार हाइवे एनएच-58 के चौड़ीकरण के दौरान 70 हजार पेड़ विकास की बलि चढ़ा दिए गए। इनमें अधिकांश पेड़ शीशम, नीम और पीपल के थे। जिस गति से पेड़ों को काटा गया, उस गति से पौध लगाने की रफ्तार काफी सुस्त रही।
मेरठ-बुलंदशहर हाइवे पर 54 हजार पेड़ काटे गए
एनएचएआई के आंकड़ों के अनुसार मेरठ और बुलंदशहर वन विभाग ने मेरठ-बुलंदशहर हाइवे के चौड़ीकरण में बाधा बन रहे 54 हजार पेड़ को काटने की अनुमति प्रदान की थी। जिन्हें एक महीने के भीतर काट दिया गया। यहां भी वही हाल रहा पौधरोपण का, जो एनएच 58 पर रहा।
मानव जीवन को प्रभावित कर रहा पर्यावरण
डा. विश्वजीत बैम्बी के अनुसार पर्यावरण के नकारात्मक परिवर्तनों के कारण पेड़ों की कटाई पहले से ही बड़े पैमाने पर मानव जीवन को प्रभावित कर रही है। फिर भी बढ़ते मानवीय लालच और विकास के नाम ने पेड़ों को अस्तित्व खतरे में कर दिया है। पेड़ों की कटाई का मामला पर्यावरण और सामाजिक समस्या के रूप में उभरा है जो एक दैत्य आकार ग्रहण कर चुका है। पेड़ों की कटाई की वजह से पारिस्थितिक और पर्यावरणीय असंतुलन पैदा होता है, जिसके कारण मानव जीवन में समस्या पैदा हो गई है। डा. बैम्बी के अनुसार पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने के साथ-साथ ऑक्सीजन की ताजा और स्वस्थ आपूर्ति के लिए पेड़ों का संरक्षण महत्वपूर्ण है।
पेड़ों के कटने से फूल रहे फेफड़े
डा. बैम्बी ने बताया कि पेड़ों की अंधाधुंध कटान से आज लोगों के फेफड़े ताजी हवा के लिए तरस रहे हैं। लोगों में सांस की बीमारी और पेट की बीमारी तेजी से बढ़ रही है। मेरठ में हर दस में से छह आदमी आज दवा के सहारे अपना जीवन बिता रहा है। यह दवा चाहे जिस रूप में ले रहा है, लेकिन बिना दवा के जीवन की दिनचर्या नहीं शुरू हो रही।
Published on:
06 Jul 2018 12:48 pm
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