
मेरठ। मेरठ जिले में एक महीने में दूसरी बार प्रशासन ने उपद्रवियों के आगे घुटने टेकते हुए इंटरनेट सेवाओं को प्रतिबंधित किया। इससे पहले दो अप्रैल को जनपद में हुई हिंसा के बाद तीन अप्रैल को प्रशासन ने उपद्रवियों के आगे इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया था। प्रशासन का मानना है कि दो अप्रैल को हुई हिंसा में सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका सामने आयी थी। असामाजिक तत्वों ने फर्जी वीडियो सोशल मीडिया पर डालकर दंगे कराने में अहम काम किया था, जिसको देखते हुए पुलिस-प्रशासन ने पहले ही रणनीति बनाई और इंटरनेट सेवाएं बंद करा दी गई। सोशल मीडिया पर अफवाह न फैले और शांति बनी रहीए इसका परिणाम सामने भी आया।
इंटरनेट सेवाएं बंद होने से परेशान रहे लोग
13 अप्रैल की रात्रि 10 बजे से बंद हुई इंटरनेट सेवाएं 14 अप्रैल की शाम को 9 बजे तक प्रतिबंधित रही। इस दौरान लोगों को परेशानी का सामना करना पडा। जिन लोगों का आफिस कार्य बिना इंटरनेट के नहीं हो सकता उन लोगों को भारी नुकसान उठाना पडा। व्यापारी वर्ग को इंटरनेट बंद होने से सर्वाधिक नुकसान हुआ। वहीं विवि के छात्रों को भी इंटरनेट बंद होने का खामियाजा भुगतना पड़ा। इंटरनेट बंद होने से बहुत से बैंकों के सर्वर भी डाउन हो गए और उनके एटीएम से भी रूपये की निकासी नहीं हो सकी। कंपटीशन फार्म भरने वालों को भी परेशानी उठानी पडी। विवि में लाइब्रेरी में पढ़ रहे छात्रों का कहना था कि इससे तो यहीं प्रतीत होता है कि पुलिस और प्रशासन ने सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों के आगे घुटने टेक दिए हैं। पुलिस ऐसे लोगों को पकडने और उन पर प्रतिबंध लगाने की बजाय पूरे जिला का इंटरनेट बंद कर तो यहीं दर्शा रही है कि ऐसे असामाजिक तत्वों के आगे उसने घुटने टेक दिए है। प्रशासन अगर इंटरनेट सेवाएं चालू रखता और सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई करता तो ऐसे लोगों के हौसले पस्त होते।
Published on:
15 Apr 2018 09:45 am
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