बता दें कि कोरोना के दौरान लॉकडाउन में भी वे किताबें लिखने में व्यस्त रहे। मेरठ में सबसे संवेदनशील क्षेत्र सदर बाजार में हिंदू-मुस्लिम एकता की जीती—जागती मिसाल थे। उनकी गिनती बड़े आलिमों में होती थी। उनका मदरसा हिंदू बाहुल्य क्षेत्र के बीच था। जहां एक ओर गुफा वाली वैष्णों देवी का मंदिर था वहीं दूसरी ओर मदरसा इमदादुल इस्लाम था। मौलाना जहां मंदिर के सामने से निकलते तो जय माता दी बोलते वहीं जब मदरसे में तो आते तो अस—सलाम वालेकुम बोलते थे।
मौलाना महफूजुर्रहमान शाहीन जमाली चतुर्वेदी ने न सिर्फ मदरसा दारुल उलूम देवबंद से इस्लामिक शिक्षा की उच्च डिग्री ‘आलिम’ हासिल की। बल्कि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से संस्कृत से एमए (आचार्य) भी किया था। चारों वेदों का अध्ययन करने पर उन्हें चतुर्वेदी की उपाधि मिली थी।
इनके गुरु की भी अलग है कहानी मौलाना चतुर्वेदी ने बताया था कि उन्होंने प्रो. पंडित बशीरुद्दीन से संस्कृत की शिक्षा हासिल करने के बाद एएमयू से एमए (संस्कृत) किया था। अपने उप नाम (चतुर्वेदी) की तरह बशीरुद्दीन के आगे पंडित लिखे जाने के बारे में बताया था कि उन्हें संस्कृत का विद्वान होने के चलते पंडित की उपाधि देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दी थी।