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किसानों की परवाह करने वाले जरा इनकी फसल पर नजर डाल लें, धरती पुत्र खुद सड़क पर फेंक रहे!

मेरठ में आलू की फसल ज्यादा होने से किसान परेशान, शीत गृहों में भी जगह नहीं मिल पा रही  

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मेरठ। किसान हितों की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली न जाने कितनी सरकारें आयी और गयी, लेकिन किसान के हालात आज भी वैसे ही हैं जैसे कभी 25 साल पहले थे। फसल के पूरे दाम न मिलना और फसल को सही सुरक्षा का सरकार का वादा पूरा न होने से धरती पुत्र अपनी फसल को सड़क पर फेंकने के लिए मजबूर है। कुछ ऐसा ही हाल इस बार आलू के साथ हो रहा है। बेचारा न किसान का रहा न कोल्ड स्टोर का। हालात यह है कि किसान आलू को सड़क पर फेंकने के लिए मजबूर हो रहा है। आलू के बोरे सड़क के किनारे फेंके जा रहे हैं। आलू की फसल की ऐसी बेकद्री होगी, खुद किसान ने भी नहीं सोचा था।

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उम्मीद से अधिक हुई फसल

इस बार मौसम की अनुकूलता और बीमारी आदि न लगने के कारण किसानों को आलू की फसल उम्मीद से अधिक मिली। हालांकि इस बार आलू का रकबा 15 प्रतिशत घट गया था। तब भी कृषि विभाग के सूत्रों के अनुसार इस बार 16 लाख कुंतल आलू के उत्पादन होने का अनुमान लगाया जा रहा है। जिले में वर्तमान में 22 शीतगृह हैं। इन शीतगृहों की क्षमता एक लाख 40 हजार मीट्रिक टन आलू रखने की है। ऐसे में सवाल है कि बाकी का बचा हुआ आलू कहां स्टोर होगा। आलू की लागत से अधिक तो किसानों को कोल्ड स्टोर का किराया देने में निकल जा रहा है। शीत गृहों ने भी अपने दाम बढ़ा दिए हैं। जिस कारण किसान शीतगृहों पर भी आलू नहीं रख रहा है।

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आलू निर्यात न होने से बढ़ी दुश्वारियां

पश्चिम उप्र के आलू की डिमांड देश के दक्षिण भारतीय राज्यों में अधिक है। पिछले वर्ष सरकार ने आलू का निर्यात खोल दिया था। जिस कारण किसानों को अधिक परेशानी नहीं हुई थी, लेकिन इस बार अभी तक सरकार ने आलू निर्यात पर कोई फैसला नहीं लिया है।

सड़कों पर दिख रहे आलू के बोरे

मेरठ-मवाना रोड और गढ़ रोड पर सड़कों के किनारे आलू के बोरे जगह-जगह पड़े दिख जाएंगे। किसान घर से आलू लादकर ट्रेक्टर से आता है और सड़क के किनारे बोरे फेंककर चला जाता है।

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