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पेंसिल पकड़ने की उम्र में थाम ली थी गन, कोचिंग की डायरी में हिन्दी के अक्षर ठीक करती थी मां

18वें एशियन गेम्स की डबल ट्रैप स्पर्धा में जीता रजत

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पेंसिल पकड़ने की उम्र में थाम ली थी गन, कोचिंग की डायरी में हिन्दी के अक्षर सही करती थी मां

मेरठ। शार्दुल विहान को उसकी मां मंजू ने नगीना बना दिया जिसके कारण वह 18वें एशियन गेम्स की डबल ट्रैप स्पर्धा में सटीक निशाना लगाकर देश के लिए रजत पदक जीत सका। जिस उम्र में बच्चें ठीक तरह से पेंसिल नहीं पकड़ पाते, उस उम्र में उसकी मां मंजू ने उसे गन थमाकर दिल्ली शूटिंग रेंज में भेज दिया। जहां पर उसने ओलंपियनों से ज्यादा स्कोर कर किया।

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डायरी में साफ अक्षर लिखती थी मां

कैलाश प्रकाश स्टेडियम स्थित शूटिंग रेंज पर शार्दुल विहान ने अपने निशाने को मेडल के लिए लक्ष्य करना शुरू कर दिया। वह नन्हें हाथों से शूटिंग की डायरी बनाता था। जिसे उसकी मां मंजू साफ अक्षरों में लिखती थीं। इस मोटी डायरी में इस होनहार खिलाड़ी की सफलता के राज सुनहरे अक्षरों में दर्ज हैं। इस खिलाड़ी की मां रात को जागकर उसकी डायरी लिखा करती थी। आठ वर्ष की उम्र में शार्दुल स्टेडियम स्थित शूटिंग रेंज पर पहुंचा तो वहां पर खिलाड़ियों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मां साथ में थी और दोनों में ही गजब का आत्मविश्वास दिख रहा था।

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स्टेडियम में सीखी बारीकियां

कोच वेदपाल रोजाना उसे शूटिंग की बारीकियां डायरी में नोट करने के लिए कहा तो वह टूटी-फूटी हिंन्दी में शब्दों को डायरी मेें उतारने लगा। इसमें शूटिंग की तकनीक, पोजीशन, गन उठाने का तरीका, फ्लाइंग शॉट में लीड लेने की तकनीक, फिटनेस जैसी जरूरी जानकारियां शामिल थी। नन्हें शार्दुल की इस लिखावट को उसकी मां रात में नई डायरी में लिखती थीं। यह सिलसिला करीब चार साल तक चला। इसमें युवा निशानेबाज अनुभव प्रताप सिंह एवं अनंत प्रताप सिंह ने भी मदद की। डा. कर्णी सिंह शूटिंग रेंज से लेकर विदेश यात्रओं का पूरा ब्योरा इस निशानेबाज ने अपनी डायरी में लिखा है। 2011 में कैलाश प्रकाश स्टेडियम में एडमिशन लेने के बाद वह प्रतिदिन डा. कर्णी सिंह शूटिंग रेंज जाने लगा। शामली निवासी अनवर सुल्तान ने भी उसे कोचिंग दी थी।

आठ की उम्र में ज्यादा अंक बटोरता था

उसके कोच वेदपाल बताते हैं कि सिर्फ आठ वर्ष का शार्दुल तमाम अंतरराष्ट्रीय शूटरों से ज्यादा अंक बटोर रहा था। उन दिनों के स्टार निशानेबाज एवं ओलंपियन राज्यवर्धन राठौर व रोजन सोढ़ी भी इस होनहार खिलाड़ी को देखकर हैरान रह गए थे। डबल ट्रैप मुश्किल इवेंट माना जाता है, किंतु शार्दुल ने अपनी लगन से इसे आसान बना लिया। उसकी मां का कहना है कि वह बेटे को ओलिंपियाड में देश के लिए गोल्ड लाने का सपना देख रही है। उसे विश्वास है कि उनका शार्दुल यह काम जरूर कर दिखाएगा।