
मेरठ। मेरठ मवाना रोड पर गंगानगर के पास स्थित वृद्धआश्रम में अनेकों ऐसे बुजुर्ग महिला और पुरूष बुढ़ापे में गुमानामी का जीवन जी रहे हैं। जो कभी समाज और परिवार के लिए प्रेरणा स्रोत रहे। इस वृद्धाश्रम में रह रही शालिनी, शकुन्तला, विमला और अनुपमा की कहानी कमोवेश एक जैसी ही है। जिन्हें उनके परिवार वालों ने यह कहकर यहां पर छोड़ दिया कि समयाभाव के कारण वे अपनी मां की देखभाल नहीं कर सकते, लेकिन वृद्धाश्रम में रहने वाली ये माएं नहीं समझती कि आज उनके बच्चों को उनकी जरूरत से ज्यादा अपना पैसा और अपना-अपना परिवार प्यार हो चला है। इन्हीं में से एक हैं शारदा गुप्ता जो वृद्धाश्रम में मिले एक कमरे में अपना पूरा दिन और साल के 365 दिन व्यतीत करती है। उनकी दुनिया अब वृद्धाश्रम का यह कमरा और यहां पर रहने वाले लोग ही हैं।
शारदा गुप्ता पेशे से कभी स्कूल अध्यापिका रही और उन्होंने समाज को संस्कार दिये और एक दिशा दिखाई, लेकिन आज उसी शारदा गुप्ता के रहने के लिए उनका भरा पूरा घर छोटा पड़ गया और बच्चों ने उन्हें इस वृद्धआश्रम में रहने के लिए छोड़ दिया। उनके बेटों की मेरठ में नामी पब्लिकेशन कंपनी है। दो बेटे दिल्ली रोड स्थित आवासीय कालोनी में रहते हैं और एक बेटी मप्र के इंदौर में है। बेटों राहुल और पंकज के पास मां को रखने के लिए न तो घर में जगह है और न ही मां की देखभाल करने के लिए समय हैं। शारदा बताती हैं कि उनकी बहुओं के पास भी उनकी देखभाल करने के लिए समय नहीं हैं। बहुएं अपनी बीमारी का रोना रोती हैं ऐसे में वे उनकी क्या देखभाल करेंगी।
25 हजार पाती हैं पेशन उसी पर सब जताते हैं हक
शारदा बताती हैं कि उनकी पेंशन 25 हजार रूपये हैं। पेंशन उनके खाते में आती हैं। पेंशन महीने में किस दिन आएगी उसके बारे में उनके पोते और बेटे पता करते रहते हैं। जिस दिन पेंशन आती हैं उन्हें घर ले जाया जाता है और उनको पेंशन निकलवाने के लिए बैंक ले जाते हैं। उस दिन उन्हें अच्छा खाना और बड़े शालीनता से बात की जाती है। उस दिन सबके पास शारदा से बात करने का समय होता है, लेकिन उसके बाद कोई वृद्धाश्रम में आकर उनकी तरफ देखता भी नहीं। उनके त्योहार होली, दीवाली, दशहरा और रक्षाबंधन सब कुछ इसी वृद्धाश्रम के एक कमरे में मनाने होते हैं। घर की याद आती हैं यह पूछने पर एक लम्बी सांस लेते हुए कहती हैं कि आज 84 साल की हो गई वृद्धाश्रम में आए 8 साल हो गए। इतने सालों में दिन में आठ मिनट भी वे अपने घर को नहीं भूलती। बच्चों के बारे में सोचती रहती हैं, लेकिन बच्चे हैं कि उनके पास मां के कोई समय नहीं है। कल मदर्स डे है जब उनको यह बताया गया तो उन्होंने कहा कि जब वह अध्यापिका भी तो मां की अहमियत बच्चों को बताती थी और बच्चों को नसीहत देती थी, लेकिन उन्हें खुद ही नहीं पता था कि उनके अपने ही बच्चे उनकी नसीहत और दिए संस्कार खुद ही भूल जाएंगे।
Published on:
13 May 2018 12:40 pm
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