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Mother’s Day 2018: अपने जैसी जिन्दगी नहीं जीने देगी यह मां बच्चों को, इनके सपने सच करने में जुटी

अफसर बनकर समाज की सेवा करना चाहते हैं बच्चे

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मेरठ। रविवार 13 मर्इ को मदर्स डे है। 'मां' ऐसा शब्द अहसासों और ममता से भरा होता है, जिसकी आंचल में आकर बच्चा अपना सभी दुख-दर्द भुला देता है। अगर इसी मां पर बच्चों पर जिम्मेदारी भी आ पड़े तो वह हंसते-हंसते निभाती है। जिम्मेदारी भी एक दो नहीं बल्कि चार-चार बच्चों की। जिनको पढ़ाने और उनका पालन पोषण करने के लिए मां ने घर से बाहर कदम रखा। इस मां के सपनों का जज्बा देखिये, ऐसा बुलंद है कि उसे इस बात की परवाह नहीं कि कल क्या होगा, लेकिन बच्चे को अधिकारी बनाने का सपना संजोए हुए हैं। यह कोई बड़े घर की नहीं बल्कि एक 45 साल की आम महिला है बबीता। जिसके चार बच्चे हैं जिनमें तीन लड़की और एक लड़का है। बबीता मेरठ के गढ़ रोड स्थित सब्जी मंडी में सब्जी बेचने का काम करती है। यही उसकी अजीविका का साधन भी है। सब्जी बेचकर ही वह अपने चारों बच्चों को पढ़ा रही है। आप सुनकर हैरान हो जाएंगे कि बच्चे भी इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहे हैं। बबीता का सपना है कि उसके बच्चे पढ़-लिखकर बड़े अधिकारी बने, जिससे उसे सब्जी न बेचनी पड़े।

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रिश्तेदारों ने दुत्कारा तो खुद उठाई जिम्मेदारी

45 वर्षीय बबीता का कहना है कि जब उसके पति की मृत्यु हुई तो उसके पास कुछ भी नहीं था। करीब 15 साल पहले उसके सामने दुखों का पहाड़ था। चारों ओर लोग और रिश्तेदार यही कह रहे थे कि कैसे बच्चों को पालन पोषण होगा कैसे जिंदगी चलेगी। उसने बताया कि वह कम पढ़ी-लिखी थी, इसलिए नौकरी कर नहीं सकती थी तो उसने सब्जी बेचने का काम शुरू किया। यह बात जब उसने अपने ससुराल वालों को बताई तो उन्होंने इसके लिए मना किया और कहा अगर ऐसा करना है तो घर से निकलना होगा। उसके लिए घर में कोई जगह नहीं है। बबीता ने बताया कि वह अपने चारों बच्चों को लेकर घर से निकल पड़ी। जिस समय वह घर से बाहर निकली उस दौरान उसकी छत नीला आसमान और बिछौना धरती की गोद थी। आज वह अपने बीते दिनों को याद करती है तो आंखों में आंसू आ जाते हैं। आज उसकी बड़ी बेटी कक्षा 10 में है और सबसे छोटा बेटा कक्षा पांच में है। उसकी इच्छा है कि उसके बच्चे खूब पढ़े।

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सुबह पांच शुरू हो जाती है दिनचर्या

बच्चों के लिए वह सुबह पांच बजे से उठकर अपनी दिनचर्या शुरू कर देती है। बड़ी सब्जी मंडी से सब्जी लाना और उसे धोकर बेचने का काम में जुट जाती है। बबीता की बड़ी लड़की सुरेखा जो कि कक्षा दस में मेरठ पब्लिक स्कूल की छात्रा है उसका कहना है कि वह बड़ी होकर मां को इतना सुख देना चाहती है कि मां अपने सभी पिछले दुखों को भूल जाए। बेटा जो कक्षा पांच में पढ़ता है उसका नाम कृष्णा है वह कहता है कि मां उसे अधिकारी बनाना चाहती है लेकिन वह डाक्टर बनकर समाज की सेवा करना चाहता है। उसके पिता की मृत्यु बीमारी से हुई थी, इसलिए वह डाक्टर बनकर ऐसे गरीब बच्चों के माता-पिता का इलाज करना चाहेगा जिनके सिर से बचपन में मां-बाप का साया न उठे।