
मेरठ. इस्लाम में मोहर्रम (Muharram 2021) का पूरा महीना दुख और गमी मनाने का होता है। मोहर्रम (Muharram) के महीने में ही शिया मुसलमान (Siya Musalman) द्वारा जूलूस निकाला जाता है। जिसमें ताजिया (Tajiya) आकर्षण का केंद्र होते हैं। ताजियों (Tajiya) का नाम तो सभी ने सुना है लेकिन ताजिया (Tajiya) होता क्या है। इसके बारे में क्या लोग जानते हैं? शायद नहीं। शिया मुसलमान (Siya Musalman) और मोहर्रम (Muharram) मनाने वाले लोग तो शायद इसके बारे में बता दें, लेकिन अन्य मजहब के लोगों ने सिर्फ ताजिये के बारे में सुना ही होगा, इसके बारे में जानते नहीं होंगे। चलिए बताते हैं ताजिया (Tajiya) का मतलब और देश में ताजिया (Tajiya) जूलूस निकालने की परंपरा कब और कैसे पड़ी।
मेरठ में बनाए जाते हैं एक से एक नायाब ताजिए
मोहर्रम कमेटी के अली हैदर रिजवी बताते हैं कि ताजिया एक अरबी शब्द है। जिसका मतलब होता है इमाम हुसैन की मजार की हुबहू नक्ल कर बनाया गया जरी और चमकीली पन्नियों का एक बुत। बता दें कि ताजियादारी की परंपरा सिर्फ भारत देश में ही है। ये दुनिया के किसी और मुल्क में नहीं है। जबकि दुनिया के अन्य मुल्कों में भारत से अधिक मुसलमान रहते हैं और वे लोग भी मोहर्रम मनाते हैं। देश और मेरठ में ताजिया का एक बड़ा कारोबार है। मेरठ के अलावा उत्तर प्रदेश के कई पुराने शहर जैसे प्रयागराज, बरेली, मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बुलंदशहर, लखनऊ, कानपुर, आजमगढ़ आदि में ये ताजिया लोगों की रोजी रोटी से भी जुड़ा हुआ है। मेरठ और लखनऊ और आसपास के ज़िलों में ताज़िया और इमामे हुसैन के रौज़ों की शबीह "ज़री" बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है। बहुत से कारीगर तो साल भर की कमाई इन्हीं दस दिनों में कर लेते हैं।
इमाम हुसैन की शहादत के गम में घरों में भी रखे जाते हैं ताजिया
मोहर्रम के महीने में इमाम हुसैन की शहादत के गम में मातम, मजलिस अज़ादारी और पुरसादारी के साथ-साथ अक़ीदतमंद अपने घरों, इमामबाड़ों और अज़ाख़ानों में ताज़िया रखते हैं। मोहर्रम का चांद नज़र आते ही अज़ाख़ाने आरास्ता हो जाते हैं। इन अज़ाख़ानों में ताज़िए भी रखे जाते हैं। कुछ लोग नवीं मोहर्रम की रात में भी ताज़िया रखते है। कुछ लोग चांद रात से ही अपनें घरों को ताज़ियों से आरास्ता करते हैं। दसवीं मोहर्रम अपने इलाक़े की कर्बला में दफ़्न करते हैं।
सिर्फ भारत में ताजियादारी की परंपरा
जानकर हैरानी होगी कि ताज़ियादारी सिर्फ़ भारत देश में ही है। ईरान और इराक़ में शिया सबसे ज़्यादा हैं और बड़े ही एहतेमाम व इंतजाम के साथ अज़ादारी होती, लेकिन मरासिमे अज़ा में ताज़िया नज़र नहीं आता। सदियों से अज़ादारों को बुज़ुर्गों से विरासत में मिली ताज़ियादारी की तारीख़ पर लोग मुस्तनद हवाले नहीं दे पातें।
तैमूर लंग ने रखी थी ताजिया की परंपरा
भारत में ताज़िया उठाए जाने की कोई परंपरा नहीं थी। 14 सदी में तैमूर लंग भारत आया हुआ था। इससे पहले वह मोहर्रम के दिनों में हर साल कर्बला (ईराक) जाया करता था और वहां से आने के बाद युद्ध लड़ता। भारत में आने के बाद तैमूर एक साल बहुत बीमार पड़ गया और कर्बला नहीं जा सका तो उसके दरबारियों ने फैसला लिया कि क्यों न यहीं कर्बला की तस्वीर बना दी जाए। दरबारियों ने फैसला लिया और कारीगरों को बुलाकर इमाम हुसैन की कब्र की तरह ताज़िया बना दी। उसके बाद वह हर साल भारत में ही ताज़िया बनवाता और उठाता था। इस ताज़िया में लोग आकर मन्नत मुराद मांगते थे और जिसकी भी मन्नत पूरी हो जाती थी वह अगले साल खुद भी ताज़िया उठाने लग जाता था। ताज़िया उठाने के लिए इस्लाम धर्म का होना ज़रूरी नहीं है बल्कि जो भी इमाम हुसैन की शहादत के बारे में जान लेता है वह ताज़िया उठाने लग जाता है।
भारत से फैली दूसरे मुल्कों में ताजिया की परंपरा
देश का जब बंटवारा नहीं हुआ था उस समय भारत और पाकिस्तान में कई ऐसे रजवाड़े खानदान थे जो ताज़िया अकीदत के साथ उठाया करते थे। ग्वालियर का सिंधिया राजघराना और हैदराबाद का राजघराना भी इनमें शुमार है। कहा जाता है कि जैसे जैसे मन्नत, मुराद लोगों की पूरी होती गई वैसे ही ताज़िया हर जगह बनाई और सजाई जाने लगी। ताज़िया की यह परंपरा भारत से होते हुए पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार तक पहुंची और अब लगभग दुनिया के हर देश में ताज़िया को बनाकर रखा जाता है और मोहर्रम की दसवीं तारीख को हर जगह ताज़िया का जुलूस निकाला जाता है।
BY: KP Tripathi
Published on:
19 Aug 2021 11:42 am
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