
uniform civil code अधिकतर मुसलमान समान नागरिक संहिता के ख़िलाफ़ नहीं हैं, समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के मुद्दे पर 22वें लॉ कमीशन द्वारा लोगों और धार्मिक संगठनों की राय मांगे जाने के बाद यह एक बार फिर चर्चा में है। स्वाभाविक है कि विधि आयोग की इस चर्चा पर राजनीतिक और धार्मिक समुदायों की ओर से बयानबाजी होगी। लेकिन, सवाल ये है कि देश में समान नागरिक संहिता से दिक्कत किसे है? जब भी समान नागरिक संहिता की चर्चा होती है तो मुसलमानों के खिलाफ कुछ इस तरह से दुष्प्रचार किया जाता है कि अगर यूसीसी लागू हो गया तो मुसलमानों की धार्मिक आस्था खतरे में पड़ जाएगी जबकि देश के अन्य कानून सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। यह कहना है डॉ. फैय्याज अहमद फैजी का। जो कि लेखक और टिप्पणीकार हैं। आज एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए डॉ. फैय्याज अहमद फैजी ने सिविल नागरिक संहिता पर अपने विचार रखे। उन्होंने सिविल नागरिक संहिता को मुस्लिमों के हित में बताया। उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म के अनुयायियों और उनकी धार्मिक मान्यताओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यदि विवाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, विरासत आदि के मामलों में एकरूपता है तो यह किसी विशेष धर्म के विरुद्ध कैसे होगी?
उन्होंने कह कि दूसरे, संविधान में यूसीसी के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश हैं कि राज्यों को इसे लागू करने का प्रयास करना चाहिए। यदि सरकार ऐसा करती है तो यह संविधान की मंशा के अनुरूप होगा। जब तीन तलाक को सरकार द्वारा अवैध घोषित किया गया, तो समुदाय के अधिकांश लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया क्योंकि यह उनके सर्वोत्तम हित में था। 'तीन तलाक' पर प्रतिबंध को, मुस्लिम मामलों में सरकार के हस्तक्षेप के रूप में भी प्रचारित किया गया, जबकि सच्चाई यह है कि यह मुस्लिम महिलाओं के लिए वरदान बन गया। जहां अशरफिया समुदाय के एक वर्ग ने यूसीसी का विरोध किया, वहीं पसमांदा समुदाय ने इसका स्वागत किया।
इसके पीछे कारण यह है कि पसमांदा समाज शादी के मामले में भारतीय संस्कृति को अपनाता है और इसके विपरीत, अरबी/ईरानी संस्कृति के कारण अशरफ समाज में दूसरी शादी और बहुविवाह बहुत आसान और आम बात है।इसी तरह जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया तो खूब हंगामा हुआ।
भारत का हर मुस्लिम वर्ग अशराफ और पसमांदा समाज से आगे
भारत के हर राज्य का अशराफ़ वर्ग, पसमांदा समाज से हर मामले में बहुत आगे है, लेकिन कश्मीर में ये अंतर और भी बड़ा है। केंद्र सरकार की कई जनकल्याणकारी योजनाओं सहित सामाजिक न्याय का आरक्षण, जो अब तक विशेषाधिकार के कारण पूरी तरह से लागू नहीं हो सका और जिसका सीधा नुकसान मूलनिवासी पसमांदा समुदाय को उठाना पड़ा, अब पूरी तरह से लागू किया जाएगा। परिणामस्वरूप, कश्मीर के पसमांदा भी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पसमांदा की तरह विकास के समान अवसरों के हकदार होंगे। सच तो यह है कि अगर सरकार यूसीसी पर आगे बढ़ती है तो पसमांदा मुसलमान इस पहल का स्वागत जरूर करेंगे।
Updated on:
09 Jul 2023 03:41 pm
Published on:
09 Jul 2023 03:40 pm
बड़ी खबरें
View Allमेरठ
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
