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Navratri 2018: मेरठ का यह मंदिर मां दुर्गा के विशेष आशीर्वाद के लिए प्रसिद्ध है तो अपने आकार के लिए भी

मेरठ के गोल मंदिर में नवरात्र पर उत्सव-सा माहौल, होती है विशेष आरती

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मेरठ। मेरठ के प्राचीन मंदिरों की तरह तो यह मंदिर नहीं है, लेकिन निर्माण के कम समय में ही इतनी प्रसिद्धि हासिल करने वाला भी जनपद का एक मात्र मंदिर है। शास्त्रीनगर व जयदेवी नगर की सीमा पर मां दुर्गा का गाेल मंदिर अपने आकार आैर मनोकामना जल्द पूरी होने की वजह से प्रसिद्ध हुआ है। नवरात्र पर मां दुर्गा की अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसती है। गोल मंदिर को देखने के लिए मेरठ ही नहीं आसपास के काफी लोग यहां पहुंचते हैं आैर मां का आशीर्वाद हासिल करते हैं। सच्चे मन से की गर्इ मनोकामना देवी जरूर पूरी करती है। नवरात्र पर यहां उत्सव-सा माहौल होता है आैर श्रद्धालु काफी संख्या में यहां पहुंचते हैं आैर शाम को हाेने वाली विशेष आरती में हिस्सा लेते हैं।

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1965 में हुआ मंदिर का निर्माण

रिटायर्ड एसपी पंडित छीतर सिंह ने इस मंदिर का निर्माण छीतर सिंह ने 1965 में कराया था। बताते हैं कि उनकी पत्नी दुर्गा की भक्त थी। एक दिन उनके सपने में देवी ने दर्शन दिए थे, तो यह बात उन्होंने छीतर सिंह को बतार्इ। उन्होंने तभी इस मंदिर को स्थापित करने का निर्णय लिया। उनका परिवार गांधी नगर में रहता था। मंदिर के लिए उन्होंने एक हजार गज जमीन खरीदी। उन्होंने परिवार के लोगों के साथ बैठकर बातचीत की आैर एेसा मंदिर बनवाने का निर्णय लिया कि जो शहर या आसपास बिल्कुल अलग हो। फिर गोल आकार का मंदिर बनवाने का निर्णय लिया, जिस पर सबकी सहमति बन गर्इ। मंदिर के छत्र को कमल के फूल का आकार भी दिया गया।

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मनोकामना पूरी होती गर्इ

यहां विधि-विधान से देवी दुर्गा की प्राण-प्रतिष्ठा के साथ मूर्ति स्थापित की गर्इ। शहर आैर आसपास के क्षेत्र में पहला गोल आकार का मंदिर होने के कारण श्रद्धालु शुरू से आने शुरू हो गए थे। यहां आकर उन्होंने देवी के सामने अपने परिवार के लोगों के साथ मनोकामना मांगी, तो उनकी जल्द पूरी भी हुर्इ। इससे गोल मंदिर की प्रसिद्धि भी बढ़ने लगी। मंदिर के अंदर कल्प वृक्ष भी लगवाया गया। इस पर कलावा बांधते हुए देवी के भक्तों की मनोकामना पूरी होने लगी।

प्रसाद चढ़ाने पर विशेष लाभ

यहां आने वाले देवी के भक्त उन्हें प्रसाद जरूर चढ़ाते हैं। चुनरी, नारियल, श्रंगार का सामान व प्रसाद के साथ दीप प्रज्जवलित करने से देवी प्रसन्न होती हैं। पुजारी राम नारायण का कहना है कि देवी के दरबार से कोर्इ खाली हाथ नहीं जाता। सच्चे मन से देवी की मूर्ति देखने पर उन्हें मां के अलग-अलग रूप का अहसास होता है।

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