
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
मेरठ. नवाब सलीमुल्लाह बहादुर (Nawab Salimullah Bahadur) का नाम कौन नहीं जानता। इनका जन्म 7 जून 1871 को वृहद भारत के ढाका में अहसान मंजिल में हुआ था। वे बंगाल के नवाब और प्रमुख मुस्लिम राजनेताओं में से एक थे। यह बातें आल इंडिया मानवाधिकार माइनरटी के जनरल सेक्रेट्री परवेज गांजी ने उनकी जयंती के मौके पर आयोजित वेबिनार में मेरठ से भाग लेते हुए कही।
नवाब सर ख्वाजा सलीमुल्लाह बहादुर की जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि सलीमुल्लाह ने मुस्लिम लीग की आधिकारिक तौर पर स्थापना की। सर सलीमुल्लाह पूर्वी बंगाल के लिए शिक्षा के प्रमुख संरक्षक थे। वहां के संस्थापकों में से एक थे। जिस समय देश में ईस्ट इंडिया कंपनी अपनी जड़ें देश में फैला रही थी तो एकमात्र नवाब सलीमुल्लाह ही थे, जिन्होंने इस कंपनी का पुरजोर तरीके से विरोध किया था। नवाब को पढ़ने-लिखने का शौक था। उन्होंने तालीम हासिल करने के बाद ढाका में विश्वविद्यालय और प्रतिष्ठित अहसानुल्लाह स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग की स्थापना की थी। वे 1913 में कलकत्ता में 43 वर्ष की आयु में अपनी मृत्यु तक बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे। वे भारत को विश्व में शिक्षा जगत का सिरमौर बनाना चाहते थे।
सलीमुल्लाह के भीतर अपने वतन के प्रति जबरदस्त लगाव था। नवाब सलीमुल्लाह ने बंगाल के बंटवारे का विरोध किया था। सलीमुल्लाह ने पूरे पूर्वी बंगाल के नेताओं की एक बैठक की अध्यक्षता की। जहां एक राजनीतिक मोर्चा बनाया था। उन्होंने बताया कि सलीमुल्लाह ने पूर्वी बंगाल और असम प्रांतीय शैक्षिक सम्मेलन के पहले अधिवेशन का आयोजन किया था। उस वर्ष के अंत में,अखबारों ने सलीमुल्लाह से भारत भर के विभिन्न नेताओं के लिए एक लेेख प्रकाशित किया। जिसमें उन्होंने एक अखिल भारतीय राजनीतिक पार्टी बनाने का आग्रह किया। सलीमुल्लाह को अपने देश भारतवर्ष से बहुत प्यार करते थे। अंत में उन्होंने कहा कि हमें भी उनके जीवन से प्रेरणा लेकर देश प्रेम को अपनाना चाहिए और अपने देश की अखंडता को बनाए रखना चाहिए।
Published on:
07 Jun 2021 04:23 pm
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