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दस साल बाद इस दिन आ रही पितृपक्ष की चतुदर्शी, इस दुर्लभ योग पर करें ये काम, पितरों को मिलेगी तृप्ति

pitru paksh chatudashi 2018 रविवार को शुरू होगी, सोमवार की सुबह तक रहेगी, लोग साेमवार को ही मनाएंगे

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meerut

दस साल बाद इस दिन आ रही पितृपक्ष की चतुदर्शी, इस दुर्लभ योग पर करें ये काम, पितरों को मिलेगी तृप्ति

मेरठ। त्योहारों और तिथियों के दुर्लभ संयोग बनते-बिगड़ते रहते हैं। ऐसे ही दुर्लभ संयोग इस बार पितृपक्ष की चतुदर्शी को पड़ रहा है। जिसमें कि करीब दस साल बाद सोमवार को पितृपक्ष की चतुदर्शी पड़ रही है। पितृपक्ष की चतुदर्शी इस बार रविवार को दोपहर से प्रारंभ हो जाएगी और सोमवार को सुबह तक रहेगी। इसके बाद अमावस्या लग जाएगी, लेकिन चूंकि शास्त्रों में उदया तिथि को ही पूजनीय और तथ्यात्मक माना गया है इसलिए चतुदर्शी सोमवार को ही मनायी जाएगी। पंडित कमलेश्वर के अनुसार सोमवार को चतुदर्शी का श्राद्ध दस साल बाद पड़ रहा है।

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इनका किया जाता है चतुदर्शी को श्राद्ध

पंडित कमलेश्वर के अनुसार पुराण में लिखा है कि वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिंड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है। जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है। सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है। इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है।

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इन चीजों का है विशेष महत्व

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है। श्राद्ध में कौओं का महत्त्व दोपहर के समय कौए को खिलाए कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है।