
Pitru Paksha 2018: 24 सितंबर से हो रहे शुरू कनागत, इस दिशा में रखें पूर्वजों के चित्र
मेरठ।पितृ पक्ष यानी श्राद्ध का एक और नाम है, वह नाम है कनागत। आखिर श्राद्ध को कनागत नाम से क्यों जाना जाता है, इसके पीछे भी ज्योतिष और हिन्दू धर्म की अपनी अलग मान्यताएं हैं। दिवंगत प्रियजनों की आत्माओं की तृप्ति, मुक्ति एवं श्रद्धा पूर्वक की गई क्रिया का नाम ही श्राद्ध है। आश्विन मास का कृष्ण पक्ष श्राद्ध के लिए ही तय माना गया है। ज्योतिषीय दृष्टि के अनुसार इस अवधि में सूर्य कन्या राशि पर गोचर करता है। इसलिए इसे 'कनागत' भी कहते हैं। पश्चिम उप्र के अधिकाश जिलों में श्राद्ध को कनागत के नाम से ही जाना जाता है। इसको कनागत ही बोला जाता है। श्राद्ध ऐसे दिवस हैं जिनका उद्देश्य परिवार का संगठन बनाए रखना है। विवाह के अवसरों पर भी पितृ पूजा की जाती है।
दिवंगत की पूजा में रखें वास्तुशास्त्र का ध्यान
दिवंगत परिजनों के विषय में वास्तुशास्त्र का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। घर में पूर्वजों के चित्र सदा नैर्ऋत्य दिशा में लगाएं। ऐसे चित्र देवताओं के चित्रों के साथ न सजाएं। पूर्वज आदरणीय एवं श्रद्धा के प्रतीक हैं, पर वे ईष्ट देव का स्थान नहीं ले सकते। जीवित होते हुए अपनी न तो प्रतिमा बनवाएं और न ही अपने चित्रों की पूजा करवाएं। ऐसा अक्सर फिल्म उद्योेग या राजनीति में होता है। जिसे किसी भी प्रकार शास्त्र सम्मत नहीं माना जा सकता। हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था। ताकि परंपराएं चलती रहें। श्राद्ध कर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता। पंडित कैलाश नाथ द्विवेदी के अनुसार कनागत को पश्चिम उप्र में बहुत धर्म और रीति के अनुसार मनाया जाता है। वैसे तो यह देश के सभी हिस्सों में उसी क्षेत्र के रीतिरिवाज के अनुसार मनाने का प्रचलन है, लेकिन वैदिक शास्त्रों के अनुसार तो प्रत्येक हिन्दू व्यक्ति इसको मानता है।
Published on:
22 Sept 2018 07:58 pm
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