
मेरठ। गणतंत्र दिवस 2020 (Republic Day 2020) को मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। स्कूल-कालेजों, सरकारी- सामाजिक संगठन व अन्य सभी संस्थाएं सभी गणतंत्र दिवस को मनाने के लिए अंतिम तैयारी में जुटे हुए हैं। आजादी से लेकर अब तक गणतंत्र दिवस को मनाने में बहुत कुछ बदला, लेकिन कुछ ऐसा भी है, जो आजादी से अब तक बदस्तूर जारी है। आजादी मिलने के 15 साल पहले से ब्रिटिश राज में प्रभात फेरी (Prabhat Pheri) निकालनी शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य यही था कि लोगों में आजादी के लिए किस तरह जोश भरा जाए। तब महत्वपूर्ण मौकों पर प्रभात फेरी का आयोजन किया जाता था, अब राष्ट्रीय पर्वों पर प्रभात फेरी निकाली जाती है।
आजादी का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में मेरठ से शुरू हुआ था। इसके बाद से पूरे देश में आजादी को लेकर आंदोलन शुरू हो गए थे। तब यहां देश के शीर्ष नेताओं की रैली होती थी, यही वजह थी कि आजादी के लिए चल रहे आंदोलन में मेरठ प्रमुख केंद्र बन गया था। देश को स्वतंत्रता मिलने के करीब 15 साल पहले से महत्वपूर्ण मौकों पर प्रभात फेरी शुरू करने का फैसला लिया गया था। इसमें शहर और आसपास के गांवों के युवक और बुजुर्ग शामिल होते थे। सुबह छह बजे इस प्रभात फेरी गांधी आश्रम से निकलने का समय होता था, उसका समय आज भी वही है।
इसमें शामिल लोग आजादी के लिए तराने गाते थे। जैसे- 'अब रैन कहां जो सोवत है, जो सोवत है वो रोवत है' जैसे तराने गाकर सुनाकर लोगों में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जोश भरा जाता था। मेरठ में आजादी की सभाओं से अलग प्रभात फेरी एक ऐसा माध्यम थी, जिसमें सबसे ज्यादा लोग आसपास के लोग एकत्र होते थे और अपने विचार रखते थे और तब शहर में प्रभात फेरी निकाली जाती थी। पहले प्रभात फेरी गढ़ रोड स्थित गांधी आश्रम से पीएल शर्मा स्मारक तक निकाली जाती थी। अब गांधी आश्रम से शहीद स्मारक तक प्रभात फेरी होती है।
पहले गणतंत्र दिवस पर शहर में अलग माहौल था। गांधी आश्रम से बच्चा पार्क स्थित प्यारेलाल शर्मा स्मारक तक प्रभात फेरी निकाली गई। इसमें हर धर्म, हर वर्ग के लोग शामिल हुए। सुबह सात बजे यहां झंडारोहण के बाद सभी लोग एक-दूसरे से मिले। इसमें पंडित गौरी शंकर, प्रकाशवती सूद, जगदीश शरण रस्तोगी, शांति त्यागी कैलाश प्रकाश, रतनलाल गर्ग, कमला चौधरी, मुसद्दीलाल, आचार्य दीपांकर, रामस्वरूप शर्मा समेत कई सम्मानित लोग शामिल हुए। शहर में कई जगह तोरण द्वार बनाए गए थे और रैलियां निकाली गई थी। बच्चों ने स्कूलों में अनेक देशभक्ति व सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए, यह परंपरा आज तक कायम है। उस दिन पूरे शहर में सजावट की गई थी। इतिहासकार डा. केडी शर्मा का कहना है कि स्वतंत्रता दिवस के मुकाबले पहले गणतंत्र दिवस पर ज्यादा हर्षोल्लास देखा गया था, पूरे शहर को दुल्हन की तरह सजाया गया था और अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए थे।
Published on:
25 Jan 2020 10:31 am
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