
केपी त्रिपाठी, मेरठ। गढ़ रोड पर मुख्य मार्ग से लिंक रोड पर करीब डेढ़ किलोमीटर चलने पर एक गांव में बजबजाती नालियां और खड़ंजों तक बहता नाली का रुका हुआ गंदा पानी दिखता है। इस गांव के प्राथमिक स्कूल के बाहर लगा गोबर का ढेर और स्कूल के मुख्य दरवाजे के सामने खड़ी घास और स्कूल तक पहुंचने के मार्ग पर उड़ती धूल। यह तस्वीर किसी सामान्य गांव की नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री गांव विकास योजना के तहत सांसद राजेंद्र अग्रवाल के गोद लिए गांव भगवानपुर चट्टावन की है, जिसे सांसद आदर्श बनाने निकले थे। 2014 में राजेंद्र अग्रवाल ने सांसद बनने के बाद भगवानपुर चट्टावन गांव को गोद लिया था। इसका मकसद यह था कि सांसद के अपने क्षेत्र में कम से कम कोई एक गांव तो ऐसा होगा, जिसमें ग्रामीणों को किसी प्रकार की कोई कमी या समस्या नहीं होगी। गांव की सड़कें स्वच्छ होंगी और गांव में स्वच्छ भारत अभियान के तहत साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाएगा, लेकिन इस गांव की हालत कुछ और ही बयां कर रही है।
ग्रामीणों ने कहा- नहीं आते सांसद
गांव की बजबजाती नालियां और उनमें भरा कई दिन का पानी जो बीमारियों की दावत दे रहा था। इसके अलावा गांव के प्राथमिक सरकारी विद्यालय के चारों तरफ के हालत तो और खराब थे। सफाई के नाम पर चारों ओर गोबर और गंदगी के ढेर लगे हुए थे। जिसको देखकर लग रहा था कि वहां सफाई हुए महीनों नहीं सालों बीत गए है। स्कूल के मुख्य गेट पर उगी हुई बड़ी-बड़ी घास के पौधे और खरपतवार इस बात की कहानी बयां कर रहे थे, जैसे स्कूल का यह गेट सदियों से खुला ही न हो। भगवानपुर चट्टावन गांव के लोगों से जब सांसद के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि सांसद कभी यहां नहीं आते। अगर आए भी तो बाहर बड़े लोगों के साथ बैठकर उनके साथ चाय पीकर चले गए। उनकी समस्या कभी नहीं सुनीं। गांव के ही बुजुर्ग का कहना है कि गांव की गलियों में अंधेरा रहता है। कभी उनकी गली में लाइट नहीं जलती। गांव के ही एक युवक से जब सांसद का नाम पूछा तो उसने हिचकिचाते हुए नाम तो बता दिया, लेकिन जब उससे पूछा कि सांसद कभी उनके मोहल्ले में उनकी समस्याएं सुनने आए तो युवक ने कहा कि वे कभी उनके मोहल्ले में नहीं आए।
Published on:
05 Apr 2018 10:37 am
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