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सावधान! इस बार आसमान में न उठे पराली का धुंआ, कृषि विभाग कर रहा ये काम

खरीफ की फसल कटाई के बाद धान की बची पराली किसानों के लिए किसी परेशानी से कम नहीं। किसान पहले तो इसको अपने खेत में ही जलाता था। लेकिन जब से इस पराली से प्रदूषण फैलने लगा है तब से किसानों को पराली न जलाने के लिए जागरूक किया जा रहा है। हर स्तर से किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए कृषि विभाग कवायद कर रहा है।

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मेरठ

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Nitish Pandey

Oct 16, 2021

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मेरठ. खरीफ के फसलों की कटाई तेज हो गई है। उसी के साथ पराली का 'धुआं' भी उठने की आहट आने लगी है। इस धुंआ को रोकने के लिए सरकार ने अपने स्तर से सभी प्रकार के प्रयास शुरू कर दिए है। इनमें कई विभागों को लगाया गया है। कृषि विभाग की कई टीमें जिले में काम कर रही है। जो कि गांव में जाकर पराली जलाने के नुकसान के बारे में किसानों केा जागरूक करने के साथ ही पराली को और किस तरह से नष्ट किया जाए इसके बारे में जानकारी दे रही हैं। इस दिशा में अनुदान पर कृषि यंत्र मुहैया कराकर हजारों किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया है। इन यंत्रों और प्रशिक्षण के मंत्र से पराली जलाने की घटनाएं कम होगीं।

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प्रदेश में करीब 60 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान और 98 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में गेहूं की खेती की जा रही है, इधर के वर्षों में मजदूरों की कमी से फसलों की कटाई और मड़ाई कंबाइन मशीन से कराई गई है। इसमें फसलों का अवशेष खेत में रह जाता है। किसान उसे निस्तारित न करके जला देते हैं। इस कार्य से वातावरण प्रदूषित होने के साथ ही मिट्टी के पोषक तत्वों नष्ट हो रहे हैं। केंद्र सरकार ने इस पर अंकुश लगाने के लिए प्रमोशन आफ एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन फार इन सीटू मैनेजमेंट आफ क्राप रेजीड्यू योजना शुरू की, ताकि फसल अवशेष का प्रबंधन उपयोगी यंत्रों से किया जा सके।

ये यंत्र अनुदान पर दिए जा रहे

जिला कृषि अधिकारी प्रमोद सिरोही ने बताया कि अवशेष प्रबंधन के लिए सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम, हैपी सीडर, सुपर सीडर, पैडी स्ट्रा, चोपर मल्चर, रोटरी ग्लैसर, हाइड्रोलिक रिवर्सिबल मोल्ड, क्राप रीपर आदि कुल 14 यंत्र मिल रहे हैं। किसान को दो यंत्र खरीदने पर 50 प्रतिशत अनुदान भी दिया जाता है। वहीं, समूह, ग्राम पंचायत व समितियों को ये यंत्र लेने पर 80 प्रतिशत तक अनुदान मिल रहा है। कृषि विभाग का दावा है कि तीन वर्ष में प्रदेश में 5602 फार्म मशीनरी बैंक व कस्टम हायरिंग सेंटर खोले जा चुके हैं जहां करीब 15 हजार अवशेष प्रबंधन यंत्र उपलब्ध हैं, किसान उन्हें किराये पर भी ले सकते हैं। ऐसे ही 27,205 किसानों को यंत्र मुहैया कराए गए हैं।

पर्यावरण क्षतिपूर्ति वसूली होगी

कृषि अधिकारी ने बताया कि किसान खेतों में पराली जलाएंगे तो उनसे पर्यावरण क्षतिपूर्ति की वसूली की जाएगी। एक एकड़ पर 2500, दो एकड़ पर पांच हजार व दो अधिक एकड़ पर 15000 रुपये का जुर्माना लगेगा। हर गांव में लेखपाल व कृषि विभाग के प्राविधिक सहायक वर्ग सी कर्मचारी को जिम्मा दिया गया है कि वे पराली की घटनाओं को रोकें। यदि किसान न मानें तो उन पर जुर्माना करें।

इन प्रयासों से न जलेगी पराली, मिलेगा लाभ

प्रमोद सिरोही ने बताया कि विभाग किसानों को वेस्ट डी कंपोजर मुफ्त में बांट रहा है, किसान उसका अपने खेतों में छिड़काव करें, 20 से 25 दिन में पराली सड़कर खाद बन जाएगी। इसके अलावा कंपोस्ट गड्डे बनाकर भी पराली से खाद बना सकते हैं। निराश्रित आश्रयस्थलों में पराली पहुंचाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि दो ट्राली पराली देकर गोवंश आश्रय स्थल से एक ट्राली खाद ले सकते हैं।

ये यंत्र बनेगे अवशेष प्रबंधन में सहायक

किसान पैडी स्ट्राचापर व मल्चर पांच फिट का खरीद सकते हैं ये अवशेष को महीन काट देता है, कीमत 74 हजार रुपये है इसमें 50 प्रतिशत का अनुदान मिलेगा। इतनी ही कीमत व अनुदान वाला 9 टाइन हैप्पी सीडर है जो खेतों आसानी से बोवाई भी कर देगा। यानी कुल 74 हजार रुपये खर्च करके किसान पराली को जलाने से बच सकते हैं। यदि वे इसे खरीद नहीं सकते तो किराये पर यंत्र ले सकते हैं।

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