script1857 से 1947: स्‍वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाएं जिन्‍हें जानना सबके लिए है जरूरी | 1857 to 1947: Know 10 major events that brought freedon to India | Patrika News

1857 से 1947: स्‍वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाएं जिन्‍हें जानना सबके लिए है जरूरी

locationनई दिल्लीPublished: Aug 15, 2019 02:48:07 pm

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Dhirendra

1857 के विद्रोह को पहला स्‍वतंत्रता संग्राम माना जाता है
खिलाफत आंदोलन से हिंदू-मुस्लिम एकता को मिला बढ़ावा
कुर्बानी बड़ी याद छोटी

Red fort
नई दिल्‍ली। ब्रिटिश हुकूमत से आजादी हासिल करने के लिए 1857 से लेकर 1947 तक कई जन आंदोलन चले, जिन्‍होंने देश को आजादी दिलाने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई। आइए हम जानते हैं ऐसे ही 11 प्रमुख घटनाओं का इतिहास।
1857
1. 1857 का विद्रोह

1857 का विद्रोह मेरठ में सैन्‍य कर्मियों के विरोध से शुरू हुआ था। यह तेजी से कई राज्‍यों में फैल गया। पहली बार ब्रिटिश शासन को सेना की ओर से गंभीर चुनौती मिली। हालांकि ब्रिटिश सरकार इसे एक वर्ष के अंदर दबाने में सफल रही।
यह निश्चित रूप से एक ऐसी लोकप्रिय क्रांति थी जिसमें भारतीय शासक, जनसमूह, किसान और नागरिक सेना शामिल थी। लोगों ने इसमें उत्‍साह से भाग लिया। इस विद्रोह को इतिहासकारों ने भारतीय स्‍वतंत्रता का पहला संग्राम कहा।
1885 congress
2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

1885 में सुरेन्द्र नाथ बैनर्जी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। इसका मुख्य लक्ष्य मध्यमवर्गीय शिक्षित नागरिकों के विचारों को आगे लाना था। प्रारंभिक दौर में इसे ब्रिटिश सरकार के सेफ्टी वॉल्‍व के रूप में देखा गया।
1906 में कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन में स्वराज प्राप्ति की घोषणा की गई। उसी के साथ स्वदेशी आंदोलन शुरु हो गया।

3. बंगाल विभाजन

1905 में पश्चिम बंगाल का विभाजन हुआ। देश की राजधानी कलकत्ता से बदलकर दिल्ली कर दी गई। बंगाल विभाजन के खिलाफ उपजे आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने 1909 में कई सुधारों को लागू किया।
इन्हें मार्ले-मिंटो सुधारों के तौर पर जाना जाता है। इसका लक्ष्य विकास करने की जगह हिंदू और मुस्लिमों में मतभेद पैदा करना था।

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4. महात्‍मा गांधी की वापसी

मोहनदास करमचंद गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका अपने जमे जमाए बैरिस्टरी के करियर को त्याग अपने देश वापस आ गए। जब मोहनदास मुंबई की अपोलो बंदरगाह पर उतरे तो न वो महात्मा थे और न ही बापू। लेकिन खेड़ा सत्‍याग्रह, चंपारण सत्‍याग्रह, स्‍वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन के बल पर भारत को आजाद कराने में अहम भूमिका निभाई।
यही कारण है कि पहले तो वो गांधी के नाम से प्रसिद्ध हुए और बाद में अपने मूल नाम से ज्‍यादा राष्‍ट्रपिता या महात्‍मा गांधी के नाम से जाने गए।

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5. जालियांवाला बाग नरसंहार
स्‍वतंत्रता आंदोलन के दौर में जहां एक ओर सुधारवादी और क्रांतिकारी योजनाएं बनाई जा रही थीं, वहीं 13 अप्रैल, 1919 को पंजाब में जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ। उस दिन यहां पर लोग बैसाखी मनाने के लिए लोग इकट्ठे हुए थे। यह नरसंहार आज तक के सबसे बड़े नरसंहार में से एक है। हाल ही में जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 साल पूरे हुए हैं।
शांतिपूर्ण ढंग से विरोध करने आए लोगों के लिए वो दिन खूनी रविवार बन गया था। इस नरसंहार के विरोध में रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश सरकार की मिली नाइटहुड उपाधि को त्‍याग दिया था।
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6. असहयोग आंदोलन

सितंबर, 1920 से फरवरी, 1922 के बीच महात्‍मा गांधी तथा भारतीय राष्‍ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्‍व में असहयोग आंदोलन चलाया गया। इससे भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा मिली।
जलियांवाला बाग नरसंहार सहित अनेक घटनाओं के बाद गांधी जी ने अनुभव किया कि ब्रिटिश हाथों से एक उचित न्‍याय मिलने की कोई संभावना नहीं है इसलिए उन्‍होंने ब्रिटिश सरकार से राष्‍ट्र के सहयोग को वापस लेने की योजना बनाई और यह आंदोलन चलाया गया। यह आंदोलन काफी सफल रहा और इसका दूरगामी असर पड़ा।
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7. खिलाफत आंदोलन

अंग्रेजी हुकूमत की जंजीरों को तोड़ने की भारत की कोशिशों में खिलाफत आंदोलन महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक था। मौलाना मुहम्मद अली और मौलाना शौकत अली के नेतृत्व में खिलाफत आंदोलन दक्षिण एशिया तक फैल गया।
भारत में खिलाफत आंदोलन वर्ष 1915 से 1924 तक चला। इस विरोध की खासियत ये थी कि इसमें तत्कालीन ब्रिटिश भारत के मुस्लिम समुदाय ने उपनिवेशवादियों के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट होकर आन्दोलन किया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की देखरेख में हिंदुओं और मुसलमानों ने एकजुट होकर ब्रिटिश राज का विरोध किया। इस आंदोलन को उस समय और मजबूती मिल गई, जब महात्मा गांधी ने उपनिवेशवाद के खिलाफ असहयोग आंदोलन को खिलाफत आंदोलन के साथ जोड़ दिया। इस तरह हिंदू मुस्लिम एक होकर उपनिवेशवादियों के खिलाफ मजबूती से खड़े हो गए।
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8. सविनय अवज्ञा आंदोलन

ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाए प्रमुख जन आन्दोलन में से एक था सविनय अवज्ञा आन्दोलन। 1929 तक भारत को ब्रिटेन के इरादे पर शक होने लगा था कि अंग्रेज औपनिवेशिक स्वराज्य प्रदान करने की अपनी घोषणा पर अमल करेगा कि नहीं। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन 1929 में घोषणा कर दी थी कि उसका लक्ष्य भारत के लिए पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करना है।
महात्मा गांधी ने अपनी इस मांग पर जोर देने के लिए 6 अप्रैल, 1930 ई. को सविनय अविज्ञा आन्दोलन छेड़ा। इसका मकसद सरकार के साथ पूर्ण असहयोग कर ब्रिटिश सरकार को झुकाना था।

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9. दिल्‍ली विधानसभा में बमबारी
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रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेंबली में बम फेंका था। बम फेंकने के बाद उन्होंने गिरफ़्तारी दी।
बाद में उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला। 6 जून, 1929 को दिल्ली के सेशन जज लियोनॉर्ड मिडिल्टन की अदालत में उन्‍हें दोषी करार दिया गया।

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10. भारत छोड़ो आंदोलन

अगस्‍त 1942 में गांधी जी ने ”भारत छोड़ो आंदोलन” की शुरुआत की तथा भारत छोड़कर जाने के लिए अंग्रेजों को मजबूर करने के लिए एक सामूहिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन ”करो या मरो” आरंभ करने का निर्णय लिया। इस आंदोलन के बाद रेलवे स्‍टेशनों, दूरभाष कार्यालयों, सरकारी भवनों और अन्‍य स्‍थानों तथा उप निवेश राज के संस्‍थानों पर बड़े स्‍तर पर हिंसा शुरू हो गई।
इसमें तोड़-फोड़ की कई घटनाएं हुईं और सरकार ने हिंसा की इन गतिविधियों के लिए गांधी जी को उत्तरदायी ठहराया और कहा कि यह कांग्रेस की नीति का एक जानबूझकर किया गया कृत्‍य है। जबकि सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, कांग्रेस पर प्रतिबंद लगा दिया गया और आंदोलन को दबाने के लिए सेना को बुला लिया गया।
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11. आजाद हिंद फौज

सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में 21 अक्टूबर, 1943 को आजाद हिंद सरकार का गठन हुआ था। सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के कमांडर की हैसियत से भारत की अस्थाई सरकार बनाई। बहुत जल्‍द इसे जर्मनी, जापान, फिलीपींस, कोरिया, चीन, इटली और आयरलैंड ने मान्यता दी थी।
सुभाषचंद्र बोस का मानना था कि अंग्रेजों के मजबूत शासन को केवल सशस्त्र विद्रोह के जरिए ही चुनौती दी जा सकती है। पिछले साल मोदी सरकार ने आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ धूमधाम से मनाई।
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