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दिल्ली। अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ( Donald Trump ) और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( Narendra Modi ) की दोस्ती की दास्तानें पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई बार मीडिया की सुर्खियों में छा चुकी हैं। उन्हीं ट्रंप ने धमकी दी कि अगर भारत एंटी मलेरिया दवा अमरीका नहीं भेजेगा, तो उसे परिणाम भुगतने होंगे। इस धमकी से देशवासी सन्न रह गए। पत्रिका के पोल में सोशल मीडिया यूज़र्स से आज यही सवाल पूछा गया कि क्या एंटी मलेरिया दवा के निर्यात पर लगी पाबंदी भारत ने अमरीका के दबाव में आकर हटाई है?
कुछ दिनों पूर्व तक ट्रंप और मोदी की दोस्ती एक मिसाल थी
भारत की यात्रा के दौरान तो ट्रंप ने मोदी की तारीफ़ें की ही थीं, अमरीका में अपने देशवासियों को संबोधित करते वक्त भी ट्रंप भारत के पीएम की नेतृत्व क्षमता और निर्णय लेने की कुशलता की तारीफ़ किए बिना नहीं रहते। अतंर्राष्ट्रीय मंचों पर भी भारत को जब किसी भरोसेमंद दोस्त की जरूरत पड़ती है, तो अमरीकी राष्ट्रपति हमेशा नरेंद्र मोदी के साथ मज़बूती से खड़े नजर आते हैं। पीएम मोदी भी हर मंच से अमरीकी राष्ट्रपति की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते रहे हैं।
ट्रंप ने क्यों दी भारत से प्रतिशोध लेने की धमकी
कोरोना वायरस ( coronavirus ) के क़हर ने अमरीका को परेशान कर दिया है। कुछ समय पूर्व तक राष्ट्रपति ट्रंप कोरोना वायरस को गंभीरता से नहीं ले रहे थे, लेकिन जल्द ही कोरोना अमरीका में तेज़ी से फैलकर तबाही मचाने लगा। संक्रमित लोगों और मृतकों की संख्या अमरीका में तेज़ी से बढ़ी है। ट्रंप ने एंटी मलेरिया ड्रग को कोरोना से जंग में गेम चेंबर बताया है। यही वजह है कि उन्होंने पीएम मोदी को फ़ोनकर इस दवा को अमरीका भेजने की रिक्वेस्ट की। सार्वजनिक रूप से भी उन्होंने कोरोना के खिलाफ जंग में भारत से मदद मांगी। लेकिन भारत खुद कोरोना से जूझ रहा है। यहां भी एंटी मलेरिया दवा की खपत बहुत ज्यादा है। यही वजह है कि भारत सरकार ने इन दवाओं के निर्यात पर रोक लगा दी। लेकिन ट्रंप की धमकी के बाद भारत सरकार ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन ( hydroxychloroquine ) के निर्यात पर लगाया प्रतिबंध आंशिक रूप से वापस ले लिया।
ज्यादातर सोशल मीडिया यूज़र्स ने कहा, फैसला दबाव में लिया गया
पत्रिका के इंटरनेट पोल में भारी संख्या में यूज़र्स ने भाग लिया। उनमें से अधिकांश ने इस बात का समर्थन किया कि एंटी मलेरिया दवा के निर्यात पर लगाया गया प्रतिबंध वास्तव में अमरीकी दबाव में ही आंशिक रूप से वापस लिया गया। फेसबुक पर पत्रिका के पोल के जवाब में 54 फीसदी यूज़र्स ने अमरीकी दबाव में फैसला वापस लेने की बात के पक्ष में राय रखी, तो 46 प्रतिशत ने इसका विरोध किया। ट्विटर पर पत्रिका के पोल में भाग लेने वाले 54.2 फीसदी यूज़र्स ने भी अमरीकी दबाव में फैसला बदलने के पक्ष में राय रखी, जबकि 39 प्रतिशत यूज़र्स मानते हैं कि ऐसा कुछ नहीं था। वहीं, 6.8 फीसदी यूज़र्स ने पता नहीं के विकल्प को चुना। इंस्टाग्राम पर अमरीकी दबाव में फैसला लेने की बात मानने वाले और इसके विपरीत राय रखने वाले दोनों ही 50 फीसदी यूजर्स रहे।
Updated on:
08 Apr 2020 07:33 pm
Published on:
08 Apr 2020 07:21 pm
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