ओवैसी के अनुसार, महत्वपूर्ण बात यह है कि 15 साल के नीतीश कुमार और उससे पहले के 15 साल तक राजद के शासन में बिहार में वास्तविक विकास नहीं हुआ। मेरे पास ऐसे आंकड़े हैं, जो स्पष्ट रूप से बताते हैं कि सभी मानकों पर (सामाजिक, आर्थिक, स्वास्थ्य और शिक्षा) मौजूदा सरकार विफल रही है, इसलिए हम सभी ने एकसाथ आकर उपेंद्र कुशवाहा को मुख्यमंत्री पद का चेहरा और देवेंद्र यादव को संयोजक बनाया।
ओवैसी ने कहा, हम सभी छोटे खिलाड़ी जरूर हैं, मगर सब कुछ एक छोटे कदम से ही शुरू होता है और धीरे-धीरे यह बढ़ता जाता है। महाराष्ट्र इसका सफल उदाहरण है। वहां जो हुआ, वह सभी के लिए आंखें खोल देने वाला होना चाहिए। चुनाव के बाद जो कुछ भी हुआ, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। हालांकि, ओवैसी ने यह जरूर कहा कि वह शिवसेना को धर्मनिरपेक्षता का प्रमाण पत्र नहीं दे रहे और कांग्रेस के गठबंधन बनाने के फैसले से भी वह असहमत हैं।
वैसे, बिहार चुनाव के संबंध में एनडीए को लेकर ओवैसी का स्पष्ट मत है कि अब यह गठबंधन अव्यवस्थित है। लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) केंद्र में सत्ता में है, फिर भी चिराग पासवान (Chirag Paswan) बिहार में स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहे हैं। कुल मिलाकर जद (यू)-भाजपा से उब चुकी जनता, कांग्रेस-राजद से लोगों की नाराजगी और चिराग पासवान का अकेले चुनाव लडऩा, ओवैसी इन सभी समीकरणों में खुद के लिए एक बेहतर संभावना तलाश रहे हैं।
ओवैसी के मुताबिक, राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पर लोगों को भरोसा नहीं है। असल में ये दोनों जनता में अपना भरोसा नहीं जगा सके। पांच साल पहले, नीतीश कुमार (Nitish Kumar), लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और राहुल गांधी एकसाथ आए थे। तब उन्होंने कहा कि अगर जनता हमें वोट दे, तो भाजपा-आरएसएस (BJP-RSS) को हरा देंगे, मगर ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि नीतीश कुमार आज भाजपा के साथ हैं। वहीं, राहुल और तेजस्वी ने लोगों को सिर्फ गुमराह किया। यही वजह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बिहार में किशनगंज के अलावा दूसरी कोई सीट नहीं जीत सकी। यहां भी मेरी पार्टी के उम्मीदवार को करीब 3 लाख वोट मिला, जबकि जद (यू) उम्मीदवार को 3 लाख 32 हजार वोट मिले और कांग्रेसी उम्मीदवार ने 3 लाख 60 हजार वोट हासिल किए। यह अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। अगर हमारा उम्मीदवार नहीं होता, तो एनडीए उम्मीदवार जीत जाता और बिहार में भी उसका क्लीन स्वीप होता। आवैसी साफ शब्दों में कहते हैं कि कांग्रेस-राजद गठबंधन राजनीतिक रूप से भाजपा को नहीं हरा सकते। उनके पास वास्तविक राजनीतिक और बौद्धिक विश्वास की कमी है।
बिहार में चुनाव लडऩे के सवाल पर ओवैसी का जवाब है कि वह किसी राजनीतिक दल के बंधक या गुलाम नहीं हैं। ओवैसी के मुताबिक उनकी पार्टी मैदान में है, क्योंकि वह संसदीय लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं और लोकतंत्र को मजबूत बनाना चाहते हैं। कोई राजनीतिक दल यह तय नहीं कर सकता कि किसे चुनाव लडऩा चाहिए और किसे नहीं। यह राजद और कांग्रेस के लिए शर्मनाक है कि मिलकर भी वे भाजपा को हराने में सक्षम नहीं हैं। यह उनकी नाकामी थी कि पिछला गठबंधन टूट गया और आज नीतीश भाजपा में हैं। कांग्रेस महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ सहयोगी है। असल में वह मुझसे यह सवाल ही नहीं पूछ सकते। मैं युवाओं में भारतीय लोकतंत्र के प्रति विश्वास पैदा करना चाहता हूं और यह करने से मुझे नहीं रोका जा सकता।
ओवैसी केे मुताबिक, हम बीते पांच साल से बिहार में लगातार काम कर रहे हैं। कोरोना संकट के दौरान लॉकडाउन और अनलॉक के दौरान भी, जब लोग परेशान थे। तब भी, जब लोग वहां बाढ़ का कहर झेल रहे थे और राजद, कांग्रेस, भाजपा तथा जद (यू) नेता दिल्ली तथा बिहार के अपने घरों में आराम फरमा रहे थे। रही बात जाति और धर्म के आधार पर वोट मांगने की, तो भाजपा से पूछा जाना चाहिए कि वह ऊंची जाति के वोट क्यों लेते हैं। राजद और कांग्रेस से यादव वोटों के बारे में सवाल किया जाना चाहिए। यह सब फैलाया हुआ एक भ्रम है। क्या मतदाता किसी राजनीतिक दल का बंधक है। आप वोटरों को भरोसे में लेते हैं, उन्हें आश्वस्त करते हैं और वे आपको वोट देते हैं।