इन लोगों को दी गई थी फांसी
राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम कन्होजी जगताप और मुनावर हारून शाह को 25 अक्टूबर 1983 को फांसी दी गई थी।
इन दोषियों ने सिलसिलवार हत्याओं में हैवानियत की सारी हदें पार कर दी थीं। 1976 जनवरी से 1977 मार्च तक इन दोषियों को 10 हत्याएं कर डाली थीं। इस मामले में आरोपी सुभाष चंडक गवाह बन गया था।
सिलसिलेवार हत्याओं ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया था। हर कोई दहशत के माहौल में जी रहा था। लेकिन इन कातिलों को हौसले और बुलंद होते चले गए। हत्यारों ने 31अक्टूबर 1976 और 23 मार्च 1977 के बीच नौ लोगों की हत्याएं की। ये लोग घर में घुसकर घरवालों को आतंकित कर महंगा सामान लूटते थे और फिर लोगों की हत्या कर देते थे।
कोर्ट ने जिस वक्त इन दोषियों को मृत्युदंग की सजा सुनाई उसक वक्त पूरे कोर्ट परिसर बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। उस समय किशोर रहे पुणे के सामाजिक कार्यकर्ता बालासाहेब रूनवाल ने कहा कि हत्याओं से लोगों के बीच इतनी दहशत पैदा हो गयी कि लोग शाम छह बजे के बाद घरों से निकलने से कतराने लगे थे।