बेंगलूरु : सिर्फ 15 फीसदी पीने लायक, आधे से अधिक हो जाता है बर्बाद
दूसरी तरफ यह शहर भारत का आईटी हब है। यहां का विकास किसी भी विकसित देश की शहरों को चुनौती देता नजर आता है। दूसरी तरफ भारत के लिए बड़ी समस्या बन चुका जल प्रदूषण से बेंगलूरु भी अछूता नहीं है। इसकी स्थिति इसलिए भी ज्यादा भयावह है कि यहां की झीलों का 85 फीसदी पानी पीने या नहाने लायक नहीं है। किसी एक झील का पानी इतना साफ नहीं कि उसे पीने या फिर नहाने लायक माना जाए। इसके अलावा यहां का आधा से अधिक पानी शहर में लगी सप्लाई की पाइपों में ही रिस कर बर्बाद हो जाता है। इसका कारण शहर में पुराने पाइपों का होना, जिसका मरम्मत कार्य नहीं किया गया है।
पूरी दुनिया के 70 फीसदी हिस्से में पानी, पीने लायक महज 3 फीसदी
पानी को बचाना इसलिए भी जरुरी है, क्योंकि धरती की सतह के 70 फ़ीसदी हिस्से में पानी के फैले होने के बावजूद दुनिया में पीने लायक मीठा पानी केवल 3 फ़ीसदी है और ये इतना सुलभ नहीं है।
100 करोड़ लोगों को साफ पानी मयस्सर नहीं
दुनिया में सौ करोड़ अधिक लोगों को पीने का साफ़ पानी उपलब्ध नहीं है, जबकि 270 करोड़ लोगों को साल में एक महीने पीने का पानी नहीं मिलता।
क्या है पानी की कमी
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ‘पानी की कमी’ तब होती है जब पानी की सालाना सप्लाई प्रति व्यक्ति 1700 क्यूबिक मीटर से कम हो जाती है।
2030 तक 40 फीसदी अधिक होगी मांग
विशेषज्ञों के मुताबिक 2030 तक वैश्विक स्तर पर पीने के पानी की मांग सप्लाई से 40 फीसदी अधिक हो जाएगी। इसके अहम कारण होंगे- जलवायु परिवर्तन, विकास की अंधी दौड़ और जनसंख्या वृद्धि। केपटाउन तो एक संकेत है, अगर अब भी हम नहीं चेतें तो बेंगलूरु समेत दुनिया के कई शरह बूंद-बूंद पानी का तरसेंगे।