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क्या है पूरा मामला
आपको बता दें कि 3 जून को मेवात के रहने वाले याचिकाकर्ता मोहम्मद शमीम की शादी हुई थी। लेकिन लड़की के परिवारवाले इस शादी से खुश नहीं थे। लिहाजा शमीम ने सुरक्षा के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। हईकोर्ट ने फैसला करते हुए मेवात के एसपी को दोनों की सुरक्षा को लेकर निर्णय लेने के आदेश दिए। पुलिस ने दोनों को सुरक्षा देते हुए प्रोटेक्शन होम में भेज दिया। लेकिन इस बीच याचिकाकर्ता के खिलाफ लड़की के परिजनों ने मामला दर्ज करावाया। इसपर पुलिस ने याचिकाकर्ता शमीम को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि बाद में निचली अदालत ने जमानत दे दी। अब जब शमीम ने प्रोटेक्शन होम से अपनी पत्नी को वापस लाने का प्रयास किया तो पुलिस ने नाबालिग होने की बात कहते हुए कस्टडी सौंपने से इनकार कर दिया। इसके बाद एक बार फिर से याचिकाकर्ता शमीम ने अपनी पत्नी को वापस लाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए अहम फैसला सुनाया।
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हाईकोर्ट ने क्या कहा
आपको बता दें कि हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह मामला मुस्लिम जोड़े का है। मुस्लिम धर्म के अकील अहमद की प्यूबेरिटी एंड मेजोरिटी पुस्तक के अनुसार यौन परिपक्वता पाने के बाद कोई भी लड़का या लड़की जिससे चाहे शादी कर सकता है और इसमें अभिभावकों की मंजूरी जरूरी नहीं है। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि यह विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लिकेशन एक्ट 1937 के तहत हुआ है, जो कि एक स्पेशल एक्ट है। भारतीय कानून में बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 एक सामान्य एक्ट है। कोर्ट का कहना है कि जहां पर भी स्पेशल एक्ट होता है वहां पर सामान्य एक्ट प्रभावहीन हो जाता है। अब ऐसे में देखा जाए तो लड़की की आयु 16 वर्ष है, तो इस आधार पर दोनों की शादी को अवैध नहीं माना जा सकता है। मुस्लिम समुदाय में शादी के लिए यौन परिपक्वता ही न्यूनतम आयु मानी जाती है। कोर्ट ने तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए अब यह आदेश दिया है कि याचिकाकर्ता शमीम की पत्नी को उसे सौंप दिया जाए।