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लॉकडाउन की मार से लाचार एक पिता अपने बेटे को नहीं दे पाया मुखाग्नि

-Coronavirus: लॉकडाउन ( Lockdown in India ) ने लोगों को इतना बेबस कर दिया है कि वे अपनों की चिता को मुखाग्नि ( Funeral ) भी नहीं दे पा रहे हैं।-लॉकडाउन में मौत की खबर पाकर भी एक पिता अपने बेटे के अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाया।-Covid-19 Updates: पत्नी से फोन पर कहा, मैं बहुत अभागा हूं, जो अंतिम समय में बेटे का चेहरा तक नहीं देख पाया, न ही उसका अंतिम संस्कार कर सका।-हिंदू-रीति रिवाज के अनुसार ग्रामीणों ने ही बेटे का अंतिम संस्कार ( Funeral of Son ) कराया।

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coronavirus father unable to attend funeral of son due to lockdown

नई दिल्ली। लॉकडाउन ( coronavirus Lockdown ) के चलते लोग कहीं घर तो कहीं अन्य जगहों पर फंसे हुए हैं। जो जहां है, वहीं रहने को मजबूर है। लॉकडाउन ( Lockdown in India ) ने लोगों को इतना बेबस कर दिया है कि वे अपनों की चिता को मुखाग्नि ( Funeral ) भी नहीं दे पा रहे हैं। ऐसा ही मामला जम्मू के कठुआ बिलावर से सामने आया है। जहां मौत की सूचना मिलने के बाद भी एक पिता अपने बेटे के अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाया। घर में मौजूद अकेली मां ने ग्रामीणों की मदद से बेटे का दाह संस्कार किया।

बिलखता रहा पिता, बोला- बहुत अभागा हूं
बिलावर के लोहाई मल्हार क्षेत्र के गांव थल निवासी मजदूर रसाल चंद की बेटे की शुक्रवार को मौत ( Son Died in Lockdown ) हो गई। वह कई सालों से बीमार चल रहा था। उसके पिता रसाल चंद पिछले डेढ़ महीने से मजदूरी के लिए जयपुर गए हुए थे। लॉकडाउन के चलते वह जयपुर में ही फंस गए। पत्नी ने फोन पर बेटे के मौत की सूचना दी। पिता रसाल पूरी तरह टूट गया और बिलखने लगा। लेकिन, वह चाहकर कर भी कुछ नहीं कर सका। उसने पत्नी से फोन पर कहा, मैं बहुत अभागा हूं, जो अंतिम समय में बेटे का चेहरा तक नहीं देख पाया, न ही उसका अंतिम संस्कार कर सका।

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ग्रामीणों की मदद से हुआ दाह संस्कार
बता दें कि रसाल चंद के दो पुत्र है। एक शिमला तो दूसरा दिल्ली में फंसा है। ऐसे में घर में सिर्फ मां ही थी। उसके बेटे राजकुमार की मौत हो गई। मौत की खबर सुनकर रिश्तेदार और ग्रामीण मौके पर पहुंचे। हिंदू-रीति रिवाज के अनुसार ग्रामीणों ने ही बेटे का अंतिम संस्कार ( Funeral of Son ) कराया। थल गांव के जनक राज ने बताया कि रसाल चंद के बेटे के अंतिम संस्कार के लिए रिश्तेदारों के साथ मोहल्ले के कुछ लोग शामिल हुए। एक पिता के लिए इससे दुख की बात क्या हो सकती थी कि उसे बेटे की मौत की खबर फोन पर मिली और वह उसके अंतिम संस्कार में शामिल भी नहीं हो पाया।

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