
COVID-19 Treatments: Govt Hospitals in Delhi are mostly vacant`
नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में कोरोना वायरस मामलों में काफी तेजी देखने को मिल रही है। ना जाने कितने ऐसे मरीज ( COVID-19 Treatments ) हैं जिन्हें बिस्तर की तलाश में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक भटकना पड़ रहा है। यह हालात तब हैं, जब दिल्ली सरकार के अस्पतालों ( Government hospitals in Delhi ) में कोरोना वायरस ( coronavirus ) मरीजों के लिए आरक्षित हर 10 बेड में से सात खाली पड़े हैं।
डॉक्टरों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि यह आम धारणा का नतीजा है कि सरकारी अस्पतालों ( Govt Hospitals ) में अच्छा बुनियादी ढांचा नहीं हो सकता है और स्वच्छता-कर्मचारियों की कमी के चलते मरीजों की उपेक्षा हो सकती है।
दिल्ली सरकार ने छह अस्पतालों में 4,360 बेड आरक्षित किए हैं। इनमें लोक नायक (2,000), गुरु तेग बहादुर (1,500), राजीव गांधी सुपर स्पेशिएलिटी (500), दीप चंद बंधु (176), राजा हरीश चंद्र (168) और जगप्रवेश चंद्र चंद्र (16) का नाम शामिल है।
दिल्ली कोरोना ऐप पर साझा किए गए रीयल टाइम डाटा के मुताबिक बुधवार को लोक नायक अस्पताल में 61 फीसदी बेड खाली थे। यह राजधानी में दिल्ली सरकार ( Delhi Govt ) द्वारा संचालित सबसे बड़ा अस्पताल है। इसके बाद गुरु तेग बहादुर (89%), राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी (49%), दीप चंद बंधु (53%), राजा हरीश चंद्र (87%) और जगप्रवेश चंद्र (100%) में खाली पड़े बिस्तर, मरीजों की बढ़ती संख्या को समायोजित करने के लिए पर्याप्त थे।
वहीं, केंद्र द्वारा संचालित अस्पतालों में कोरोना वायरस मामलों के लिए 1,470 बेड हैं। इनमें से 84 फीसदी पर बुधवार को मरीज आ गए। लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में एक भी खाली बेड उपलब्ध नहीं था, जबकि राम मनोहर लोहिया (2), सफदरजंग (6), एम्स-दिल्ली (63) और एम्स-झज्जर में 164 बेड उपलब्ध थे।
वहीं, राजधानी के निजी अस्पतालों ( private hospitals ) में 3,349 बेड हैं और इनमें केवल 29% बेड खाली थे। इनमें 2,000 बेड अभी जुड़ने हैं, जिन्हें मंगलवार को दिल्ली सरकार के आदेश के अनुसार जोड़ा जाना है। इसलिए दिल्ली में कोरोना वायरस रोगियों के लिए कुल 9,000 से अधिक बेड उपलब्ध होने के बावजूद संकट की स्थिति है।
वकील और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल कहते हैं कि लोग बुनियादी सुविधाओं और स्वच्छता के लिए सरकारी अस्पतालों में नहीं जाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, "मैं उन मरीजों से मिला हूं जो एक निजी अस्पताल में बिस्तर पाने के लिए इंतजार करने को तैयार हैं, लेकिन सरकारी अस्पताल में भर्ती नहीं होना चाहते। उन्हें लगता है कि सरकारी अस्पतालों में दी जाने वाली देखभाल काफी अच्छी नहीं होगी।" अग्रवाल ने बताया कि निजी अस्पतालों के विपरीत, अधिकांश सरकारी अस्पतालों में सिंगल कमरे नहीं हैं। इसके अलावा अलग से शौचालय नहीं हैं।
लोक नायक अस्पताल के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा, "सफाई और स्वच्छता की कमी निश्चित रूप से गंभीर चिंता का विषय है। सरकारी अस्पतालों में एक कॉमन बाथरूम होता है। मरीजों को ज्यादातर सामान्य वार्ड में भर्ती किया जाता है, जिनके एक हॉल में आठ से 10 मरीज होते हैं।" उन्होंने कहा यह इस तथ्य के बावजूद है कि सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा और ऑपरेशन अक्सर निजी अस्पतालों से बेहतर या बराबर होते थे।
Updated on:
11 Jun 2020 12:24 pm
Published on:
11 Jun 2020 08:58 am
बड़ी खबरें
View Allविविध भारत
ट्रेंडिंग
