
Petitioners ने की UGC के आदेश को रद्द करने की मांग।
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ( Delhi High Court ) ने कोरोना वायरस महामारी ( Coronavirus Pandemic ) के दौर में फाईनल ईयर एग्जाम कराने को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( UGC ) से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने यूजीसी से पूछा कि महामारी की गंभीरता को देखते हुए आप एग्जाम कैसे लेंगे, हमें बताइए।
देश के 13 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश की दर्जनों यूनिवर्सिटी के 31 छात्रों ने यूजीसी (UGC) के 6 जुलाई, 2030 के दिशानिर्देशों को दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता छात्रों में एक कोरोना पीड़ित भी है। इन याचिकाओं पर आज सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने यूजीसी से जवाब मांगा है।
नवंबर में पीक पर होगा कोरोना
कोरोना वायरस ( Coronavirus Pandemic ) की स्थिति को लेकर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रीसर्च ( ICMR ) ने कहा है कि नवंबर में कोरोना का पीक सीजन आ सकता है। ऐसे में आप ऑफलाइन परीक्षा कैसे कराएंगे? क्या आप छात्रों को दिल्ली बुला सकेंगे? कोर्ट ने यूजीसी से ये बताने को कहा कि क्या एमसीक्यू, असाइनमेंट, प्रेजेंटेशन आदि के विकल्प अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए उपलब्ध हैं। याचिकाकर्ताओं ने यूजीसी के हालिया आदेश को रद्द करने की मांग की है।
Fundamental Right का उल्लंघन
कोरोना पीड़ित याचिकाकर्ता का कहना है कि अंतिम वर्ष के कई छात्र हैं जो या तो खुद कोरोना संक्रमण के शिकार हैं या उनके परिवार के सदस्य इस महामारी की चपेट में हैं। ऐसे छात्रों को इस 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाओं में बैठने के लिए मजबूर करना अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार का खुला उल्लंघन है।
आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर परिणाम घोषित हो
यचिकाकर्ता की ओर से वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने दायर याचिका में दावा किया है कि आमतौर पर 31 जुलाई तक छात्रों को मार्क शीट या डिग्री दे दी जाती है। जबकि वर्तमान मामले में परीक्षाएं 30 सितंबर तक खत्म होंगी। याचिकाकर्ताओं की दलील है कि जब विभिन्न शिक्षा बोर्ड की 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं रद्द करके आंतरिक मूल्यांकन ( internal assessment ) के आधार पर परिणाम ( Exam result ) घोषित किए जा सकते हैं, तो अंतिम वर्ष के छात्रों के साथ ऐसा क्यों नहीं किया जाता?
संशोधित यूजीसी ( UGC ) दिशानिर्देश मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। यह परीक्षार्थियों की आर्थिक, मानसिक, शारीरिक और सामाजिक दुर्दशा को ध्यान में रखने में विफल रहा है। वे एक भारी जोखिम के संपर्क में होंगे और अविश्वसनीय रूप से सभी परीक्षार्थियों के लिए समान आधार और उपचार की उपेक्षा करके ईमानदारी के मूल सिद्धांत का बलिदान करेंगे।
Updated on:
22 Jul 2020 07:52 pm
Published on:
22 Jul 2020 07:50 pm
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