
कोरोना लॉकडाउन (corona lockdown) के चलते देश के कई राज्यों में मजदूर फंसे हुए हैं। कामकाज -काम ठप होने के कारण इनसे काम भी छिन गया है। इसलिए ज्यादातर राज्यों से निकलकर वे अपने घर जाना चाहते हैं। आवाजाही पर पाबंदी होने पर कई तो पैदल ही घरों की तरफ चल पड़े। ऐसी हालत देखकर अब केंद्र सरकार ने श्रमिम ट्रेनें (Shramik Trains)चलाने की अनुमति दी। इसके बावजूद इन मजदूरों के सामने बेरोजगारी की समस्या अभी बनी हुई है।
स्वरोजगार भी बंद
इसी बीच अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी और सिविल सोसायटी ऑर्गनाइजेशन ने एक सर्वे कराया है, जिसमें सामने आया है कि देश में दो-तिहाई से ज्यादा लोगों के पास रोजी-रोटी का जरिया खत्म हो गया है। वहीं, जिनके पास रोजगार बचा है, उनकी कमाई में भारी कमी आई है। यह भी सामने आया है कि आधे से ज्यादा घरों में कुल कमाई से एक सप्ताह का सामान खरीदना भी मुश्किल हो रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक- चिंता की बात यह हे कि लॉकडाउन के कारण बड़ी कंपनियों में कामकाज बंद नहीं हुआ, बल्कि उसके सहारे चल रहे स्वरोजगार के ज्यादातर काम भी बंद होते जा रहे हैं।
4000 मजदूरों पर किया गया शोध
इस सर्वे के लिए देश के अलग-अलग राज्यों के 4000 मजदूरों को लिया गया। इनमें बिहार, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के मजदूर शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने मजदूरों से उनकी आर्थिक हालत और फरवरी से लेकर लॉकडाउन के दौरान हो रही कमाई के बारे में सवाल पूछे थे। स्वरोजगार से जुड़े लोगों, दिहाड़ी मजदूरों और सामान्य नौकरीपेशा मजदूरों से भी बात की गई।
शहरों में स्थिति ज्यादा खराब
इस सर्वे में सामने आया कि गांवों में हालात ठीक नहीं हैं। ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी का आंकड़ा शहरों से भले ही थोड़ा कम है। लेकिन यहां लगभग 57 फीसदी यानी हर दस में से छह लोग लॉकडाउन से प्रभावित हुए हैं। दूसरी ओर शहरों में स्थिति ज्यादा खराब है। शहरी क्षेत्र में हर दस में से आठ लोगों का रोजगार छिना है। यहां 80 फीसदी लोग बेरोजगार हो चुके हैं। सर्वे से यह भी सामने आया है कि जिन लोगों के पास रोजगार बचा है, उनकी आमदनी पर भी असर पड़ा है। गैर-कृषि क्षेत्र में काम करने वालों की आमदनी 90 फीसदी कम हुई है। इस काम में लगे लोग पहले जहां हर हफ्ते औसतन 2240 रुपए कमा लेते थे, अब कमाई महज 218 रुपए ही रह गई। जो दिहाड़ी मजदूर फरवरी महीने में हर हफ्ते औसतन 940 रुपए कमा लेता था, उसकी आमदनी करीब आधी हो गई है।
सर्वे में दिया गया 6 महीने का राशन देने का सुझाव
इस सर्वे में सुझाव दिया गया है कि- मजदूरों के जीवन को पटरी पर लाने के लिए सभी जरूरतमंदों को कम से कम अगले छह महीने तक मुफ्त राशन देने का इंतजाम किया जाना चाहिए। साथ ही ग्रामीण इलाकों में मनरेगा का दायरा बढ़ाने का सुझाव दिया गया है, ताकि वहां रह रहे ज्यादा से ज्यादा लोगों को काम मिल सके। खास बात यह है कि सर्वे में कहा गया है कि जरूरतमंदों की पहचान करके उनके खाते में कम से कम दो महीने सात-सात हजार रुपया डाला जाना चाहिए।
Updated on:
13 May 2020 09:19 am
Published on:
13 May 2020 09:18 am
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