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चिपको आंदोलन के प्रणेता और पर्यावरणविद् Sundar Lal Bahuguna का निधन, कोरोना से थे संक्रमित

हिमालय के रक्षक, चिपको आंदोलन के प्रणेता और मशहूर पर्यावरणविद् सुंदर लाल बहुगुणा नहीं रहे, 94 की उम्र में ऋषिकेश स्थित एम्स में ली अंतिम सांस

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Sundera lal Bahuguna Passes Away due to Covid 19 in AIIMS Rishikesh

Sundera lal Bahuguna Passes Away due to Covid 19 in AIIMS Rishikesh

नई दिल्ली। जाने माने पर्यावरणविद ( Environmentalist )और चिपको आंदोलन ( Chipko Movement ) से पहचान बनाने वाले सुंदरलाल बहुगुणा ( Sundarlal bahuguna ) नहीं रहे। उनका शुक्रवार को कोरोना ( Corona ) से निधन हो गया है।

हालांकि, गुरुवार शाम तक बहुगुणा की हालत स्थिर थी। उनका ऑक्सीजन सेचुरेशन 86 फीसदी पर था। डायबिटीज के साथ वह कोविड निमोनिया से पीड़ित थे।

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इसी महीने कोरोना से हुए संक्रमित
94 वर्षीय सुंदरलाल बहुगुणा को कोरोना से संक्रमित होने के बाद बीती आठ मई को उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित एम्स में भर्ती कराया गया था।

गुरुवार को एम्स के जनसंपर्क अधिकारी हरीश थपलियाल ने बताया, उनका उपचार कर रही चिकित्सकों की टीम ने इलेक्ट्रोलाइट्स व लीवर फंक्शन टेस्ट समेत ब्लड शुगर की जांच और निगरानी की सलाह दी थी।

आपको बता दें कि देहरादून स्थित शास्त्रीनगर स्थित अपने दामाद डॉ. बीसी पाठक के घर पर रह रहे सुंदरलाल बहुगुणा ने कुछ दिन पहले बुखार आया था।

हालांकि इस बुखार का इलाज उनके घर पर ही डॉक्टरों की निगरानी में किया जा रहा था। लेकिन बुखार नहीं उतरने पर तीसरे दिन उन्हें एम्स ले जाने की सलाह दी गई। सुंदर बहुगुना के बेटे राजीव ने बताया कि अस्पताल में उनका आरटीपीसीआर टेस्ट व अन्य जांचे की गई थी।

राजीव नयन ने सोशल मीडिया पर पिता को एडमिट करने की पोस्ट डाली तो देखते ही देखते उनकी यह सूचना वायरल होने लगी थी।

सोशल मीडिया पर सैकड़ों की संख्या में उनके प्रशंसकों ने पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा की सलामती की कामना भी की थी।

जब पेड़ से चिपककर खड़ी हो गई थीं महिलाएं
सुंदरलाल बहुगुणा ने गौरा देवी और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी। 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए।

पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा। चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था।

सीएम ने जताया दुख
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पर्यावरणविद् बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त हुए इसे देश की अपूरणीय क्षति बताया।

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पर्यावरण के लिए बहुगुणा का योगदान
- 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया।

- बहुगुणा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की और 15 वर्षों तक पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके बाद 15 साल के लिए रोक लगा दी गई।

- सुंदरलाल बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़ कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा था।

- एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था। टिहरी बांध के निर्माण के आखिरी चरण तक उनका विरोध जारी रहा। उनका अपना घर भी टिहरी बांध के जलाशय में डूब गया था।

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