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राकेश टिकैत ने की अपने पिता का फॉर्मूला लागू करने की मांग, ऐसा हुआ तो जानिए किस भाव बिकेगा गेहूं?

कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार और किसानों के बीच शुरु हुआ विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे राकेश टिकैत ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर बड़ा बयान दिया है

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राकेश टिकैत ने की अपने पिता का फॉर्मूला लागू करने की मांग, ऐसा हुआ तो जानिए किस भाव बिकेगा गेंहू?

राकेश टिकैत ने की अपने पिता का फॉर्मूला लागू करने की मांग, ऐसा हुआ तो जानिए किस भाव बिकेगा गेंहू?

नई दिल्ली। कृषि कानूनों ( New Farm Laws ) को लेकर केंद्र सरकार और किसानों के बीच शुरु हुआ विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। इस बीच देश भर के किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे राकेश टिकैत ( Rakesh Tikait ) ने न्यूनतम समर्थन मूल्य ( MSP ) को लेकर बड़ा बयान दिया है। एक न्यूज चैनल से बात कर रहे राकेश टिकैत ने कहा कि एमएसपी के लिए उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत ( Mahendra Singh Tikait ) का फार्मूला लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में जिस स्पीड़ से सोने के मूल्य ऊपर जा रहे हैं, उसी गति से गेहूं के दाम भी बढऩे चाहिए। राकेश टिकैत ने कहा कि तीन क्विंटल गेहूं की कीमत एक तोला सोने के बराबर होनी चाहिए।

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राकेश टिकैत ने आंदोलन में नई जान फूंक दी

दरअसल, 26 जनवरी यानी गणतंत्र पर ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसक घटनाओं के बाद जहां किसान आंदोलन बैकफुट पर गया था और कई किसान संगठन आंदोलन का साथ छोड़ गए थे, ऐसे में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रय प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत ने आंदोलन में नई जान फूंक दी है। हालांक किसान आंदोलन बिल्कुल किनारे से वापस लौटा है, लेकिन राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन को संजीवनी दे दी। आलम यह है कि गाजीपुर बॉर्डर पर न केवल किसानों का रेला दिखाई पड़ रहा है, बल्कि राकेश टिकैत के देश के बड़े किसान नेता के रूप में उभरे हैं। ऐसे में न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर आया उनका बयान काफी मायने रखता है।

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प्राइमरी के टीचर का वेतन 70 रुपए महीने था

किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर तब तक महेंद्र सिंह टिकैत का फॉमूला नहीं लागू किया जाएगा, तब तक देश के किसानों का भला होने वाला नहीं है। राकेश टिकैत ने कहा कि देश में एमएसपी पहली बार 1967 में तय किया गया था। उस समय गेहूं की फसल 76 रुपए क्विंटल हुआ करती थी। यह वो समय था जब प्राइमरी के टीचर का वेतन 70 रुपए महीने था। इसका सीधा-सीधा मतलब यह है कि एक टीचर अपने एक माह के वेतन से एक क्विंटल गेंहू नहीं खरीद सकता था। वहीं, किसान एक क्ंिवटल गेंहू की कीमत से भट्टे से चार हजार ईंटें खरीद लेते थे। राकेश टिकैत ने कहा कि वह जिस समय की बात कर रहे हैं, उस समय 30 रुपए में एक हजार ईंट आया करती थी।

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सोने का रेट भी 200 रुपए तोला से ज्यादा नहीं था

भाकियू नेता ने कहा कि तब सोने का रेट भी 200 रुपए तोला से ज्यादा नहीं था। इसलिए किसान तीन क्ंिवटल गेंहू मूं एक तोला सोना खरीद लेते थे। उन्होंने कहा कि किसानों को तीन क्ंिवटल गेंहू की एवज में एक तोला सोना दे दो और फसलों की कीमत तय समझो। राकेश टिकैत ने कहा कि जिस हिसाब से अन्य चीजों के दाम बढ़ रहे हैं, उसी हिसाब से गेंहू के भी दाम बढऩे चाहिए।