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गूगल ने दी राजा राममोहन राय को श्रद्धांजलि, भारतीय पुनर्जागरण के नायक की याद में बनाया डूडल

गूगल ने भारतीय पुनर्जागरण के नायक और महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय की 246वीं जयंती के अवसर पर डूडल बनाकर उन्‍हें श्रद्धांजलि अर्पित की है

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गूगल ने दी राजा राममोहन राय को श्रद्धांजलि, भारतीय पुनर्जागरण के नायक की याद में बनाया डूडल

नई दिल्ली। गूगल ने भारतीय पुनर्जागरण के नायक और महान समाज सुधारक राजा राममोहन राय की 246वीं जयंती के अवसर पर डूडल बनाकर उन्‍हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। मंगलवार को गूगल ने अपना डूडल राजा राममोहन राय को ध्यान में रखते हुए तैयार किया है। राजा राममोहन राय ने 19वीं सदी में देश की सामाजिक कुरीतियों को ख़त्म करने के लिए अनेक आंदोलन चलाए, जिनमें सती प्रथा और बाल विवाह जैसे आंदोलन सबसे अहम थे।

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डूडल बनाकर महान विभूतियों को श्रद्धांजलि देने का गूगल का अपना ही अंदाज है। मंगलवार को राजा राममोहन राय का 246वां जन्मदिन है। राममोहन राय को देश में पुनर्जागरण के जनक के तौर पर जाना जाता है। उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा जाता है। राजा राममोहन राय की याद में बनाए गए इस डूडल को टोरंटो की डिजाइनर बीना मिस्त्री ने बनाया है। इस गूगल डूडल में राजा राममोहन राय किताब पकड़े हुए चित्रित हैं।

कौन हैं राजा राममोहन राय

भारतीय पुनर्जागरण के जनक राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई 1972 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के राधानगर में हुआ था। बचपन से ही वह मूर्तिपूजा और बहुदेववाद के विरोधी थे। राजा राममोहन राय शुरू से हिन्दू धर्म में व्यापत कुरीतियों के विरोधी रहे। हिंदू धर्म की रूढियों के खिलाफ उन्होंने शुरू से ही संघर्ष किया ताकि इसकी बुराइयों को सामने लाकर लोगों को जागरुक किया जा सके। हिन्दू धर्म की रूढ़ियों पर प्रहार करने के लिए उन्होंने 'तुहफात उल मुवाहिदीन' नामक किताब भी लिखी। इस किताब में उन्होंने धर्मिक आडंबरों का विरोध किया और उसके मूल स्वरुप को स्थापित करने पर जोर दिया। 1828 में उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की।

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सती प्रथा को खत्म करने का श्रेय

राजा राममोहन राय को सती प्रथा समाप्त करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने इसके खिलाफ शुरू से संघर्ष किया। उन्होंने समाज में महिलाओं और पुरुषों के लिए के लिए समान अधिकारों के भी वकालत की और विधवा विवाह एवं स्त्रीधन के लिए लोगों को जागरूक किया। इन सब सुधारों को गति देने के लिए उन्होंने 1828 में उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की। इसे भारत का पहला सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन कहा जाता है। ब्रह्म समाज ने देश के कोने कोने में सतीप्रथा के साथ साथ अन्य सामाजिक बुराइयां जैसे बालविवाह, बहु विवाह और जात-पात के खिलाफ संघर्ष किया।