
नई दिल्ली। कहते हैं कि अगर आप दिल से, शिद्दत से किसी के लिए कुछ करना चाहते हो, तो आपको कोई ताकत नहीं रोक सकती। अच्छे कर्म करने वाला इंसान कभी किसी के आगे नहीं झुकता है। अगर आप में किसी चीज को करने की इच्छाशक्ति हो तो उसे आप पूरे मन से करते हैं। लेकिन कभी-कभी संसाधनों की कमी के कारण हमारे हौसलें जरूर टूटते दिखते हैं लेकिन इरादे पक्के हों तो सब कुछ हो जाता है। ऐसा ही कुछ हुआ कर्नाटक के एक स्कूल में। कर्नाटक के सिरसी के इसलूर गांव में वहां के एक स्कूल के हालात कुछ ऐसे थे कि बच्चों को पढ़ाने के स्कूल के पास खुद की बिल्डिंग तक नहीं थी। सुविधाएं न होने के कारण गांव का यह स्कूल बंद होने वाला था। गांव में बच्चों के लिए एक रेजिडेंशियल स्कूल स्थापना करने का प्लान भी बनाया। लेकिन गांव में कोई ऐसी जगह ही नहीं थी, जहां 40 बच्चों के बैठने की व्यवस्था कर सकें।
लेकिन कहते हैं ना जहां चाह होती है, वहां राह भी जरूर होती है। सरकार की इस योजना से बच्चों के स्कूल को बंद होता देख गांव के ही रहने वाले शशिधर भट्ट ने अपने ही घर में बच्चों के पढ़ने की व्यवस्था करा दी। यानी अपने घर में ही स्कूल खोल दिया। इस पर शशि ने कहा कि जब उन्हें पता चला कि उनके गांव में खुलने वाला स्कूल खुलने से पहले ही बंद होने वाला है, तो उन्हें जानकर बहुत अफ़सोस हुआ। यह सब जानने के बाद वह बच्चों के लिए कुछ करना चाहते थे। इसके बाद उन्होंने घर के सभी लोगों से बात की क्या वह स्कूल के बच्चों के लिए कुछ कर सकते हैं। तो घर वालों की सहमति के बाद शशिधर स्कूल के लिए अपना घर देने के लिए राज़ी हो गए।
शशिधर के घर का नाम डॉ. अंबेडकर रेजिडेंशियल स्कूल रखा गया है। अभी स्कूल में कुल 40 बच्चे हैं। जिसमें 36 बच्चें पढ़ाई कर रहे हैं। शशिधर का कहना है कि वह भविष्य में भी 5 क्लास स्कूल के लिए बनवाना चाहते हैं।
Published on:
10 Oct 2017 11:23 am
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