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भारत में ‘चिकन पॉक्स’ को क्यों कहा जाता है ‘माता’, आप भी जानिए वजह

शरीर में होने वाले इस इन्फेक्शन को ‘माताजी’ या ‘माताजी का प्रकोप’ माना जाता है।

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Chicken pox

नई दिल्ली। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि ‘चिकन पॉक्स’ या ‘खसरा रोग’ एक से दूसरे में संचारित होने वाले रोगों में से एक है। यह एक तरह के लाल और छोटे-छोटे दानों के समान होते हैं जो चेहरे से होना शुरू हो जाते हैं तो धीरे-धीरे गर्दन उसके बाद पेट और फिर पूरे शरीर में फैल जाते हैं। सामान्य तौर पर यह एक आम बीमारी होती है लेकिन हम भारतीयों को इसमें भी चैन कहां है, हमें तो हर बात को अपने धर्म से जोड़ना होता है। ऐसे में इस बीमारी को लोगों ने भगवान का प्रकोप कह डाला। शरीर में होने वाले इस इन्फेक्शन को ‘माताजी’ या ‘माताजी का प्रकोप’ माना जाता है। यहां तक मेडिकल साइंस भी इन बातों पर भरोसा करता है।

खैर! सोचने वाली बात यह है कि क्या वाकई यह कोई बीमारी ना होकर ‘माताजी का प्रकोप’ या उनका ‘आशीर्वाद’ है? ऐसा कहने के पीछे क्या कारण है? क्या इस सच में इसके बारे में कोई खास तथ्य है? इन सवालों के जवाब देने के लिए हम आपके लिए इस विषय से जुड़ी कुछ खास बातें लेकर आए हैं। आइये जानते हैं पूरा मामला विस्तार से...

भगवान की सजा
ऐसा माना जाता है कि भगवान ही मनुष्यों के शरीर को कंट्रोल करते हैं इसलिए जब भी हम बीमार होते हैं तो ऐसा समझा जाता है कि ये भगवान की दी हुई सजा या उनका गुस्सा है।

शीतला माता से जुड़ी है ये बात
आप सभी ने शीतला माता के बारे में तो सुना ही होगा। शीतला माता को दुर्गा माँ का स्वरुप मानकर पूजा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उनकी पूजा करने से चेचक, फोड़ा-फुंसी, घाव आदि बीमारियां दूर होती हैं।

उग्र के साथ-साथ दयालु भी
शीतला माता का स्वरुप ऐसा होता है- माता दाएं हाथ में चांदी की झाड़ू लिए होती हैं जो बीमारी फैलाने का प्रतीक है। वहीं बाएं हाथ में ठंडे पानी का बर्तन दिखाया गया है जो बीमारी ठीक करने का प्रतीक है। शीतला का अर्थ- जैसा कि उनका नाम है उसी तरह शीतला माता को ठंडाई और शीतलता की देवी कहा जाता है। उनके लिए शीतला सप्तमी का त्यौहार भी मनाया जाता है।

शीतला सप्तमी की परंपरा
कई सालों से ऐसी परंपरा है कि शीतला सप्तमी के दिन लोगों के घर में गर्म खाना नहीं बनाया जाता। केवल वही खाया जाता है जो एक दिन पुराना या ठंडा होता है। इस दिन सभी लोग गर्म खाने से बचते हैं।

ज्वरसुरा
पुराने समय में इसे ज्वरसुरा के नाम से जाना जाता था जो बच्चों में इस बीमारी के फैलने का कारण होता था। फिर माँ कात्यायनी जो कि शीतला माता का ही एक स्वरुप हैं बच्चों के शरीर में आती थीं और रक्त को शुद्ध करके ज्वरसुरा बैक्टीरिया को शारीर से खत्म कर देती थीं।

शीतला माँ का गुस्सा
कुछ परम्पराएं ऐसी भी हैं जिसमें ऐसा माना जाता है कि ‘चिकन पॉक्स’ या ‘माताजी’ उसी इंसान को होता है जिस पर शीतला माता का बुरा प्रकोप होता है।

माताजी बचाने के लिए आती हैं
इसके अलावा ऐसा भी कहा जाता है कि जब भी कोई खसरा जैसे रोग से ग्रस्त होने वाला रहता है तो माताजी उसके शरीर में आकर खसरे को खत्म करती हैं ताकि व्यक्ति फिर स्वस्थ हो पाए।

6-10 दिन में हो जाता है आराम
सामान्य तौर पर इसे दूर करने के लिए किसी खास तरह का मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं लिया जाता बल्कि ऐसा माना जाता है कि 6 से 10 दिन में माताजी खुद इस शरीर को छोड़ कर चली जाएंगी और व्यक्ति फिर स्वस्थ हो जाएगा।

मान्यता है कि माता नीम के पेड़ पर निवास करती हैं
शीतला माता के बारे में यह कहानी प्रचलित है कि वे 7 बहनें थीं। जिनका निवास नीम के पेड़ पर हुआ करता था। नीम को बैक्टीरियल इन्फेक्शन दूर करने का भी कारक माना जाता है। तो जब भी कोई ‘चिकन पॉक्स’ या ‘माताजी’ की इस बीमारी का शिकार होता है, उसे नीम की पत्तियों पर सोने की सलाह दी जाती है।