ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलें बढ़ा रहीं हैं उत्तराखंड जैसी आपदा का खतरा
उत्तराखंड ग्लेशियर त्रासदी के बाद सामने आई बड़ी जानकारी।
इस घटना ने दुनिया को किया है ग्लोबल वार्मिंग के प्रति आगाह।
झीलों का आकार बढ़ने से ग्लॉफ की घटनाओं का ख़तरा बढ़ा।
Lakes made after melting of glaciers creates increased risk of disaster
नई दिल्ली। उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने के बाद हुई तबाही ने ग्लोबल वार्मिंग के खतरों के प्रति एक बार फिर आगाह किया है। पहाड़ों में ऐसी घटनाएं ग्लेशियर के टूटने या फिर ग्लेशियरों की वजह से बनी झीलों की दीवारें टूटने से होती हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं, जिससे हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में नई झीलें लगातार बन रही हैं। बढ़ते तापमान के कारण ग्लेशियरों के टूटने या फिर ग्लेशियरों के पिघलने से बनी झीलों की दीवार खिसकने का खतरा भी बढ़ रहा है, जो निचले इलाकों में भीषण तबाही का कारण बन सकता है।
उत्तराखंड जल प्रलय में अब तक 202 लोग लापता, एनडीआरएफ और आईटीबीपी के जवान खोजबीन में जुटे तापमान बढ़ने के कारण हिमाचल प्रदेश के ऊंचाई वाले हिमालय क्षेत्र में छोटी-बड़ी करीब 800 झीलें बन गई हैं। हिमालय क्षेत्र में बड़ी ग्लेशियर झीलें चिंताजनक हैं, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण इन झीलों का आकार बढ़ने से ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (ग्लॉफ) की घटनाओं का ख़तरा बढ़ रहा है। ग्लेशियर झीलों का आकार बढ़ने और उन झीलों के अचानक टूट जाने से निचले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पानी और मलबे के बहाव को ग्लॉफ से जोड़कर देखा जाता है।
हिमाचल प्रदेश का विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद का जलवायु परिवर्तन केंद्र इन झीलों को लेकर निरंतर अध्ययन कर रहा है। इस केंद्र से जुड़े शोधकर्ताओं का कहना है कि हिमालय के इस क्षेत्र में बनने वाली झीलें अलग-अलग आकार की हैं, जिनमें 550 से अधिक झीलें हिमाचल प्रदेश के लिए सबसे अधिक संवेदनशील हैं। तापमान में वृद्धि होने के कारण ग्लेशियरों के पिघलने का सिलसिला हाल के वर्षों में तेज हुआ है, जिससे कृत्रिम झीलों के आकार में वृद्धि हो रही है।
अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में ही सतलज, चिनाब, रावी और ब्यास बेसिन पर 100 से अधिक नई झीलें बन गई हैं। वर्ष 2014 में सतलज घाटी में 391 ग्लेशियर झीलें थीं, जिनकी संख्या बढ़कर 500 हो गई है। इसी तरह, चिनाब घाटी में लगभग 120, ब्यास में 100 और रावी में 50 ग्लेशियर झीलें बनी हैं।
उत्तराखंड में आई आपदा पर Sunny Deol ने जताया दुख, ट्वीट कर प्रार्थना करने की बात कही ग्लेशियरों के पिघलने से इन झीलों में पानी की मात्रा बढ़ रही है। इसीलिए, इन झीलों के बनने और उनका आकार बढ़ाने में जिम्मेदार ग्लेशियरों की निगरानी के लिए उपग्रहों की मदद ली जाती है। हिमाचल प्रदेश सरकार में पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सचिव केके पंत कहते हैं कि इन झीलों और ग्लेशियरों की निगरानी पूरे साल की जाती है, जिसकी वार्षिक रिपोर्ट सभी संबंधित विभागों व एजेंसियों के साथ साझा की जाती है।
भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के दिवेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के वैज्ञानिकों द्वारा कुछ समय पूर्व किए गए अध्ययन के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग का हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों पर व्यापक दुष्प्रभाव पड़ रहा है। अध्ययन ने आगाह किया है कि चरम जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के कारण वर्ष 2050 तक सतलज नदी घाटी के ग्लेशियरों में से 55 प्रतिशत ग्लेशियर लुप्त हो सकते हैं।
अल्मोड़ा के जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में पता चला है कि गंगोत्री का सहायक ग्लेशियर चतुरंगी करीब 27 वर्षों में करीब 1,172 मीटर से अधिक सिकुड़ गया है। चतुरंगी ग्लेशियर की सीमा सिकुड़ जाने से इसके कुल क्षेत्रफल में 0.626 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है और 0.139 घन किलोमीटर बर्फ भी कम हुई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह ग्लेशियर प्रतिवर्ष 22.84 मीटर की दर से सिकुड़ रहा है।