
कश्मीर: Lockdown 4.0 में नहीं मिली सरकारी मदद तो मसीहा बने आम लोग, ऐसे कर रहे मदद
नई दिल्ली। देश में कोरोना ( coronavirus ) मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में कोरोना वायरस ( Coronavirus in india ) की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ( Central Goverment ) ने लॉकडाउन ( Lockdown 4.0 ) को 31 मई तक के लिए बढ़ा दिया है। लॉकडाउन के इस चौथे चरण के लिए सरकार ने नए दिशा निर्देश भी जारी किए हैं। वहीं, आर्टिकल 370 ( Article 370) के बाद से तमाम तरह के प्रतिबंधों की मार झेल रहे जम्मू-कश्मीर ( Jammu-Kashmir ) की लॉकडाउन ने हालत बद से बदतर कर दी है। लोगों की आर्थिक स्थिति वेंटीलेटर पर पहुंच गई है।
हालांकि कोरोना संकट के बीच कुछ प्रशासनिक एजेंसिया और सामाजिक संगठन लोगों की मदद को आगे आए हैं। ये संगठन गरीबों को खाने से लेकर स्वास्थ्य कर्मियों को पीपीई आदि तक बांट रहे हैं। इस बीच आम लोगों में से ही कुछ ऐसे भी शख्स हैं, जो बिना किसी सरकारी सपोर्ट के चुपचाप लोगों की सेवा में जुटे हैं। यहीं के रहने वाले मकनू और उसके दोस्तों को जब लॉकडाउन की सूचना मिली तो उन्होंने निर्णय लिया कि वे जरूरमंद लोगों के सेवा में जिस भी तरीके से योगदान दे सकते हैं, देंगे। उन्होंने देखा कि न केवल आम लोग, बल्कि डॉक्टर भी मास्क तलाश में हैं तो उन्होंने दर्जियों से किराए पर काम कराया और कुछ ही दिनों में 2,000 मास्क तैयार करा लिए। मकनू और उसके दोस्तों ने मिलकर ये मास्क लोगों में बांट दिए।
इस बीच उनको महसूस हुआ कि भोजन की परेशानी मास्क की समस्या से कहीं अधिक गंभीर थी। इसके लिए उन्होंने कुछ और लोगों को अपने साथ लिया और जरूरतमंद लोगों के बीच चावल, आटा, मसाले, दाल और साबुन जैसे खाद्य पदार्थों की किट वितरित करने का निर्णय लिया। हालांकि यह बहुत चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि अगस्त 2019 से यहां के लोग पहले से ही आर्थिक समस्या में घिरे थे। ऐसे में लॉकडाउन ने जैसे लोगों की कमर तोड़ दी। हजारों की संख्या में डेली वेजर्स, गाड़ी खींचने वालों, मजदूरों, ड्राइवरों और बुजुर्गों को इसकी भोजन की सख्त जरूरत थी।
मकनू के दोस्तों में से एक ने बताया कि ऐसे लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए हमने बारामूला के शहरी क्षेत्रों में और फिर दूसरे चरण में, जिले के ग्रामीण हिस्सों में लगभग 850 परिवारों को 500 खाद्य किट वितरित बांटे। वहीं, निज़ामी अपने तीन सहयोगियों के साथ लॉकडाउन के बीच रोगियों की देखभाल और जरूरतमंद लोगों तक दवाइयां पहुंचाने के लए एक ट्रस्ट चला रही है। एक सरकारी अस्पताल में कार्यरत निज़ामी का कहना है कि कुछ समय पहले उसके पति की कैंसर से मौत हो गई थी। उस समय उसने बहुत करीब से दर्द को झेला था। तभी से उसने बेसहारा लोगों का इलाज करने की ठानी।
Updated on:
18 May 2020 03:58 pm
Published on:
18 May 2020 03:53 pm
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