script‘महात्मा गांधी जी ने कहा था, मैं हिंदू हूं और राष्ट्रवादी हूं’ | Mahatma Gandhi: Tolerance, Hinduism and Sri Ram | Patrika News
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‘महात्मा गांधी जी ने कहा था, मैं हिंदू हूं और राष्ट्रवादी हूं’

सहिष्णुता, हिंदुत्व की बहस के बीच गांधी जी इस पर क्या सोचते थे, जानना दिलचस्प रहेगा। इसके साथ ही भगवान राम के बारे में गांधी जी का दर्शन भी जानते हैं।

नई दिल्लीSep 27, 2018 / 10:17 am

अमित कुमार बाजपेयी

gandhi ji

धार्मिक सहिष्णुता, हिंदुत्व, भगवान राम और महात्मा गांधी

नई दिल्ली। आगामी 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती है। देेश भर में इसे लेकर आयोजनों की रूपरेखा तय हो चुकी है। अहिंसा और सत्य के रास्ते पर चलकर देश को आजादी दिलाने वाले महात्मा गांधी की प्रासंगिता आज भी उतनी ही है, जितनी उस दौर में थी। बीते दो सालों में देश में चल रही सहिष्णुता, हिंदुत्व की बहस के बीच गांधी जी इस पर क्या सोचते थे, जानना दिलचस्प रहेगा। इसके साथ ही भगवान राम के बारे में गांधी जी का दर्शन भी जानते हैं।
भाजपा नेता कलराज मिश्र की किताब ‘हिंदुत्व एक जीवन शैली’ में गांधी जी से जुड़ी बात कही गई है। किताब के पृष्ठ संख्या 179 पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक सालिगराम दूबे ने हिंदुत्व मानव श्रेष्ठता का चरम बिंदु नाम से एक लेख लिखा है। इसमें उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है।
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दूबे लिखते है, “आज हम जिस हिंदू संस्कृति की बात करते हैं वह एक उद्धिवासी व्यवस्था है, जिसके विचारों व दृष्टिकोण में विविधता पाई जाती है और जिसमें नदियों की गति की तरह निरंतरता है। हिंदुत्व एक जीवन-पद्धति या जीवन-दर्शन है, जो धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को परम लक्ष्य. मानकर व्यक्ति व समाज को नैतिक, भौतिक, मानसिक व आध्यात्मिक उन्नति के अवसर प्रदान करता है।”
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वो लिखते हैं कि गीता का कर्मवाद 21वीं शताब्दी के वैश्वीकरण के युग में भी प्रासंगिक है। हिंदुत्व शब्द में मानवता का मर्म संजोया है, अनगिनत मानवीय भावनाएं इसमें पिरोई हैं। सदियों तक उदारता व सहिष्णुता का पर्याय बने इस शब्द को कतिपय कुछ अविचारी लोगों ने अपने संकीर्ण स्वार्थ के लिए विवादित कर रखा है, जबकि हिंदुत्व ने ही समस्त विश्व को उदारता, सहिष्णुता व प्यार का संदेश दिया। इसन अनेक धर्मों व संप्रदायों को अपने में समाहित कर रखा है। हिंदुत्व आदि काल से वसुधैव कुटुंबकम व धार्मिक सहिष्णुता के सिद्धांत पर चलने की शिक्षा देता है, परंतु कुछ निहित स्वार्थी लोगों द्वारा धर्मनिरपेक्षता के आवरण के पीछे हिंदुत्व को भगवा आतंकवाद की संत्रा देने से पूरे देश व मानवता का अहित हो रहा है।
दूबे के मुताबिक, “राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने स्वयं कहा था कि मैं हिंदू हूं और मैं राष्ट्रवादी हूं। अर्थात हिंदुत्व व राष्ट्रवाद एक-दूसरे के पर्याय हैं- तथाकथित धर्मनिरपेक्षताादियों को हिंदुत्व का सही अर्थ समझने की आवश्यकता है। राष्ट्र का संरक्षण व सशक्तीकरण प्रत्येक भारतीय का परम कर्तव्य है। भारत के राष्ट्रीय एकात्म को मजबूत करने का कार्य एकमात्र हिंदू धर्म ने किया है, क्योंकि भारत में राष्ट्रीयता हमारी संस्कृति की कोख से उत्पन्न हुई है। राष्ट्रीयता हमारी मातृत्व शक्ति है और हिंदुत्व हमारी परंपरा, भगवान राम हिंदू समाज के आदर्श पुरुष, इसी कारण उन्हें पुरुषोत्तम राम कहा गया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की राम के प्रति आस्था से पूरा विश्व परिचित है। उनका प्रिय भजन ‘रघुपति राघव राजा राम…..’ किसे प्रिय नहीं है।”
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सालिगराम दूबे की मानें तो भगवान राम के बिना गांधी के व्यक्तित्व की परिकल्पना हो ही नहीं सकती। लेकिन पता नहीं क्योंकि धर्मनिरपेक्षता की रोटी सेंकने वाले लोग महात्मा गांधी की राम के प्रति आस्था को समझ नहीं पा रहे हैं और गांधी को अपना आदर्श तो मान लिया और राम को दरकिनार कर दिया। परंतु हिंदुत्व एक आदिकालीन संस्कृति रही है और इसे दरकिनार करना पूरी मानवता के लिए घातक होगा। यह एक ऐसी संस्कृति है जिसने हजारों वर्षों से मानव-मूल्यों को अपने में समाहित कर रखा है और मानवीय श्रेष्ठता का चरम बिंदु ही हिंदुत्व की पहचान है।
उन्होंने आगे लिखा, “भारतीय मूल के लोग हिंदू संस्कृति को सनातन धर्म या शास्वत नियम कहते हैं। वास्तव में हिंदुत्व एक दर्शन है जो मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं के अतिरिक्त उसकी मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकता की पूर्ति करता है। हिंदू शब्द व्युत्पत्ति के अनुसार एक भौगोलिक शब्द है। फारसी शब्दकोश में इससे व्युत्पन्न अनेक शब्द पाए जाते हैं। इसी व्यापक रूप में भारत भूमि पर रहने वाले सभी लोग कहलाए और उनकी सभ्यता को हिंदुत्व कहा गया।”
लोकमान्य तिलक के शब्दों में हिंदू धर्म के बारे में बताते हुए दूबे लिखते हैं, “सिंधु नदी के उद्गम स्थान से लेकर हिंद महासागर तक जिसकी मातृभूमि हो वह हिंदू कहलाएगा और उसका धर्म हिंदुत्व। हिंदू शब्द मात्र कोरे धार्मिक और आध्यात्मिक इतिहास को ही अभिव्यक्त नहीं करता, वह सभी मत-मतांतरों का अनुसर करता है। इसका संकीर्ण प्रयोग राष्ट्र व समाज दोनों का अपमान है। हिंदुत्व एक ऐसी संस्कृति है जो राष्ट्रवाद व नवजागरण चाहती है।”

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