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#MeToo: नाना और नाथ से पहले नोबेल पर भारी पड़ चुकी है यह कैंपेन

#MeToo कैंपेन ने बॉलीवुड के बाद मीडिया इंडस्ट्री और भारतीय राजनीतिक गलियारे में भी दस्तक दे दी है। इससे पहले यह अभियान इस साल साहित्य के नोबेल प्राइज को भी रद्द करवा चुका है।

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Nobel Prize and MeToo Campaign

#MeToo: नाना और नाथ से पहले नोबेल पर भारी पड़ चुकी है यह कैंपेन

नई दिल्ली। दुनियाभर में छाए #MeToo कैंपेन ने बॉलीवुड के बाद मीडिया इंडस्ट्री और भारतीय राजनीतिक गलियारे में भी दस्तक दे दी है। #MeToo कैंपेन ने इस वक्त भारत में भूचाल सा मचा दिया है। सबसे पहले बॉलीवुड अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने कुछ दिन पहले नाना पाटेकर पर इस कैंपेन के जरिये यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए और सोशल मीडिया पर यह कैंपेन टॉप ट्रेंड में शामिल हो गया। लेकिन इससे पहले #MeToo कैंपेन के साए में नोबेल पुरस्कार जैसा प्रतिष्ठित सम्मान भी आ चुका है, जिसे रद्द करना पड़ गया।

सबसे पहले बात करते हैं देश में चल रही मौजूदा #MeToo कैंपेन की। तनुश्री दत्ता ने 10 साल पहले हॉर्न ओके फिल्म के सेट पर नाना पाटेकर द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न के बारे में बताया। नाना पाटेकर ने इन आरोपों का खंडन किया और मानहानि का नोटिस भी भेजा। इसके जवाब में दत्ता ने पुलिस के साथ ही महिला आयोग में मामले की शिकायत की। इतना ही नहीं तनुश्री दत्ता ने विवेक अग्निहोत्री पर भी आरोप लगाया कि 2005 में उन्होंने एक फिल्म की शूटिंग के दौरान गलत ढंग से व्यवहार किया।

नाना-तनुश्री के विवाद के बाद बॉलीवुड में #MeToo कैंपेन का समर्थन करने वाले मुखर हो गए। कई अभिनेत्रियों ने इसके तहत अपने बुरे अनुभव बताए और सोशल मीडिया पर #MeToo ट्रेंड करने लगा। कंगना रनौत ने 2014 में अपनी फिल्म क्वीन के लिए विकास बहल पर आरोप लगाते हुए कहा कि वो गलत ढंग से छूते थे। वहीं, मुंबई के एक कॉमेडियन उत्सव चक्रवर्ती पर भी पिछले सप्ताह एक महिला ने अश्लील फोटो भेजने के साथ टॉपलेस फोटो की मांग करने का आरोप लगाया।

देश के मशहूर लेखक चेतन भगत पर भी एक महिला ने वॉट्सऐप पर आपसी चैट के स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए आरोप लगाए। इसके बाद भगत को फेसबुक पर माफी मांगनी पड़ी। फिल्म कलाकार रजत कपूर पर भी दो महिलाओं ने अभद्र व्यवहार के आरोप लगाए। वहीं, मशहूर गायक कैलाश खेर पर भी एक महिला पत्रकार ने उत्पीड़न का आरोप लगाया।

अभी आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चल ही रहा था कि एक अंग्रेजी अखबार की महिला पत्रकार ने वरिष्ठ संपादक पर काफी पहले किए गए यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया और यह कैंपेन मीडिया को भी अपनी चपेट में ले आया। इसके बाद अब एक और महिला पत्रकार ने पूर्व संपादक और केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाकर राजनीतिक गलियारे में भी #MeToo कैंपेन की हलचल मचा दी।

लेकिन क्या आपको पता है कि #MeToo कैंपेन की जद में केवल नाना पाटेकर, आलोक नाथ, एमजे अकबर जैसे लोग ही नहीं बल्कि दुनिया का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार भी आ चुका है। यह मामला इसी साल का है और इस साल साहित्य के क्षेत्र में नोबेल प्राइज को रद्द कर दिया गया है। संस्था का कहना है कि वो बुरे वक्त से गुजर रही है, जिसके चलते इस वर्ष इस प्राइज को रद्द किया जा रहा है।

दरअसल स्वीडिश अकादमी को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। इसकी वजह संस्थान की एक पूर्व सदस्या के पति और फ्रांसीसी फोटोग्राफर ज्यां क्लाउड अर्नाल्ट पर कथितरूप से यौन-दुराचार का आरोप लगा था। इसके बाद मई 2018 में अकादमी ने घोषणा कर दी कि वो इस साल साहित्य का नोबेल प्राइज नहीं देगी। इसके साथ ही अकादमी ने घोषणा की कि वो 2019 में ही दोनों वर्षों के विजेताओं की घोषणा करेगी।

वर्ष 1901 से शुरू हुए नोबेल प्राइज के इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा मामला है। बीते साल #MeToo अभियान के अंतर्गत 18 महिलाओं ने अर्नाल्ट के ऊपर यौन शोषण और उत्पीड़न का आरोप लगाया था। लेकिन अर्नाल्ट ने इन आरोपों का खंडन कर दिया था। इसके चलते संस्था ने अर्नाल्ट की पत्नी और लेखिका कैट्रीना फ्रोसटेंशन को बाहर निकाले जाने के खिलाफ मतदान किया था। तब लाभ के पद का फायदा उठाने के आरोप के साथ ही नोबेल प्राइज विजेताओं के नामों के लीक हो जाने की बात पर अकादमी बंट गई थी।

बस फिर क्या था, लोगों ने इस्तीफे देना शुरू कर दिया। फ्रोसटेंशन के साथ ही अकादमी की मुखिया प्रो. सारा डेनियस ने भी त्यागपत्र सौंप दिया।


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