दरअसल संघ प्रमुख डॉ. भागवत ने रविवार को बयान देते हुए कहा था कि यदि कोई हिंदू कहता है कि मुसलमान यहां नहीं रह सकता है, तो वह हिंदू नहीं है। गाय एक पवित्र जानवर है, लेकिन जो इसके नाम पर दूसरों को मार रहे हैं, वो हिंदुत्व के खिलाफ हैं। ऐसे मामलों में कानून को अपना काम करना चाहिए। उनका यही बयान भाजपा के लिए गले की फांस बन गया है।
संभवतया भागवत चुनावों के पहले हिंदु-मुस्लिम एकता की बात करना चाह रहे होंगे परन्तु यहां यह भी देखना जरूरी है कि देश की मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी भाजपा को तिरछी निगाहों से देखता है और उस पर भरोसा नहीं करना चाहता, शायद यही कारण है कि आज भी मुस्लिम बहुल इलाकों में भाजपा को अधिक वोट नहीं मिल पाते। ऐसे में भाजपा को अपने हिंदू समर्थकों के वोट टूटने का भी डर लग रहा है तो दूसरी ओर बाकी पार्टियों को यह लग रहा है कि कहीं मुस्लिम मतों का विभाजन नहीं हो जाए।
मोहन भागवत के इस बयान को लेकर खुद संघ में भी दो धड़े बने हुए हैं, एक धड़ा इस बयान को संघ की पारंपरिक विरासत से जोड़ते हुए देश के हर नागरिक को हिंदुस्तानी मानता है जबकि दूसरा स्पष्ट तौर पर मुस्लिमों के विरोध में है।
संघ के जानकार कहते हैं कि देश में हमेशा संघ के विरुद्ध दुष्प्रचार किया गया, संघ को मुस्लिमों का विरोधी बताया गया जबकि संघ खुद को हिंदू बताते हुए कहता है कि हम कट्टरता की भावना नहीं फैलाते वरन देश के हर नागरिक में राष्ट्रवाद की अलख जगाना चाहते हैं। मुस्लिमों के बीच अपनी पहचान को पुख्ता करने के लिए ही आरएसएस ने राष्ट्रीय मुस्लिम मंच जैसे संगठन की भी स्थापना की और मुख्तार अब्बास नकवी जैसे चेहरों को आगे रखने का प्रयास किया है।